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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 233
महारानी कहती है- राजन् आप एक कम्बल नही खरीद सके और आपकी मेहतरानी के पास बत्तीस कम्बल हैं, क्या यह उचित है?"
तब राजा ने महारानी से सम्पूर्ण वृत्तान्त जानकर उन व्यापारियो को पुन बुलाया । रत्न - कम्बल खरीदने के लिए। लेकिन व्यापारियो ने कहा कि हमने तो सोलह कम्बल भद्रा सेठानी को बेच दी। अब एक भी हमारे पास अवशिष्ट नही है। तब राजा ने एक सेवक भद्रा सेठानी के पास एक कम्बल लेने के लिए भेजा । वह भद्रा के पास पहुँचकर जब कम्बल मॉगने लगा तो भद्रा ने कहा- मेरी बहुओ ने कम्बल ओढ लिये तो उनके ओढे हुए कम्बल राजा को कैसे दूँ? वे ओढकर निर्माल्य (काम मे आई हुई अपवित्र वस्तु) कम्बल निर्माल्य भण्डार मे डाल दिये हैं क्योकि मेरी बहुऍ प्रतिदिन नवीन देवदूष्य ओढती है और दूसरे दिन उन्हे उतार देती है, पहनती नहीं। तब उनको राजा को कैसे दे सकती हूँ? यहाॅ पर यह ज्ञातव्य है कि भद्रा को कम्बल भगिन को देने की जानकारी न होने से उसने निर्माल्य भडार मे डालने की बात कही है । 10
हेमचन्द्राचार्य ने त्रिषष्टिश्लाकापुरुष मे ऐसा उल्लेख किया है कि जब राजा श्रेणिक का सेवक भद्रा सेठानी के पास रत्न कम्बल लेने हेतु पहुँचा तो भद्रा ने कहा कि रत्न - कम्बलो के तो शालिभद्र की स्त्रियो ने पादप्रोच्छन बना दिये है । इसलिए यदि काम मे ली हुई रत्न कम्बलो की आवश्यकता हो तो राजा श्रेणिक से पूछकर आ जाओ । वह सेवक राजा के पास पहुँचा और उसने भद्रा द्वारा कही गयी सारी बात राजा से कह डाली ।
तब नृपतिश्रेणिक के मन मे शालिभद्र को देखने की समीहा समुत्पन्न हुई और शालिभद्र को राजमहलो मे आमंत्रित करने हेतु उसी सेवक को भेजा । सेवक भद्रा सेठानी के समीप पहुँचा और कहा कि आपके पुत्र को महाराजा याद कर रहे हैं।
तब भद्रा सेठानी राजा श्रेणिक के पास पहुँची और उसने भूपति से निवेदन किया - महाराज । मेरा पुत्र कभी भी घर से बाहर नहीं निकलता, इसलिए कृपा करके आप उसे देखने हेतु मेरा घर-आँगन पवित्र करो !"
जवाहर किरणावली के अनुसार शालिभद्र को बुलाने स्वय अभयकुमार गये, लेकिन शालिभद्र के स्थान पर भद्रा स्वयं उनके साथ महाराजा से मिलने आई 1 12
राजा को भद्रा का घर देखने की जिज्ञासा थी ही, भद्रा का निमन्त्रण प्राप्त कर उसने स्वीकृति प्रदान कर दी । महाराजा के घर आने की स्वीकृति प्राप्त कर भद्रा अतीव प्रमुदित हुई । वह उन्हीं हर्ष - भावो से घर गयी और राजमहल से लेकर घर तक का मार्ग विचित्र मणि- रत्नो आदि से परिमण्डित करवाया ।