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232 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय विशिष्ट थी। दासियो ने बतलाया कि यहाँ मुनीम-गुमाश्ते रहते हैं। अब तृतीय मजिल पर पहुंचे, जहाँ भद्रा सेठानी थी। दासियो ने भद्रा सेठानी से कहा ये व्यापारी रत्न-कम्बल लेकर आये हैं, इनकी रत्न-कम्बले बहुमूल्य होने से मगधेश श्रेणिक नही खरीद सके अतएव ये बहुत निराश हो गये है। इन्हे हम यहाँ आपकी सेवा मे लाये हैं ताकि इनकी निराशा आप द्वारा अपगत हो सके।
भद्रा ने उन व्यापारियो से पूछा-तुम्हारे एक कम्बल का मूल्य क्या है? व्यापारी-सवा लाख स्वर्ण मुहरे। भद्रा-तुम्हारे पास कम्बल कितनी हैं? व्यापारी-सोलह।
भद्रा-तब बत्तीस बहुओ को कैसे दूंगी? अच्छा, ऐसा करो इनके दो-दो टुकडे कर दो। ____ व्यापारियो ने एक-एक कम्बल के दो-दो टुकडे कर दिये और भद्रा ने बीस लाख स्वर्ण मुहरे देकर कम्बल खरीद लिये। व्यापारी दॉतो तले अगुली दबाते हुए चले गये।
भद्रा ने एक-एक कम्बल का टुकडा एक-एक बहू को ओढने के लिए दे दिया। उन्होने वह कम्बल ओढा और देवदूष्य पहनने वाली उन बहुओ के शरीर मे वह चुभन पैदा करने लगा।
उन्होने स्नान किया और स्नान करके उन कम्बलो को एक तरफ डाल दिया, नये देवदूष्य वस्त्र धारण कर लिये । प्रात काल भगिन को कम्बल दे दिये।
इधर दूसरे दिन वह भगिन उस रत्न-कम्बल को ओढकर राजा के यहाँ पहुंची। चेलना महारानी ने प्रासाद के गवाक्ष मे से मेहतरानी को रत्न- कम्बल ओढे देखा तो वह चिन्तन करने लगी-अरे | यह वही रत्न-कम्बल हैं जो राजा कल नहीं खरीद पाये थे, लेकिन इसके पास कहाँ से आई? रानी चेलना ने भगिन को बुलाकर पूछा कि ये कम्बल कहाँ से लाई?
भगिन ने कहा-शालिभद्र के यहाँ से मुझे बत्तीस कम्बल मिले हैं।
जैसे ही महारानी ने यह श्रवण किया, उसके चेहरे की हवाइयाँ उडने लगी। वह सोचने लगी कि मुझे एक कम्बल नहीं मिला और यह बत्तीस कम्बल की मालकिन बन गई। यही सोचकर उसका अन्तर्हृदय व्यथित हो गया और वह कोपभवन मे चली गयी।
राजा श्रेणिक को महारानी के कुपित होने का वृतान्त ज्ञात हुआ तो वह महारानी के अन्ते पुर मे पहुँचकर उसके कुपित होने का कारण पूछते हैं। तब