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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 231 रत्न-कम्बल लेकर परदेश से व्यापारी आये और राजगृह के बाजार मे अपनी रत्न-कम्बल बेचने की कोशिश करने लगे। भरसक कोशिश करने पर भी बेशकीमती वे कम्बले व्यापारी बाजार मे विक्रय नहीं कर सके । अत मे एक दलाल उनको राजा श्रेणिक के समीप ले गया। राजा श्रेणिक एव उनकी नन्दा, चेलना आदि महारानियो ने उन रत्न-कम्बलो को देखा । देखते ही वे उन्हे खरीदने को तत्पर हुए। राजा ने सोलह ही कम्बल खरीदने के भाव से व्यापारियो को कम्बल का मोल पूछा, लेकिन उनकी कीमत बहुत अधिक होने से राजा ने उनको नहीं खरीदा।
व्यापारी राजा द्वारा कम्बल नहीं खरीदे जाने पर औदासीन्य भाव धारण कर पनघट मे एक वृक्ष के नीचे बैठ गये। इधर शालिभद्र की दासियाँ पानी भरने के लिए पनघट पर आई और उन्होने व्यापारियो को उदास देखा तो पूछा-आप लोग किस कारण उदास होकर बैठे हैं?
व्यापारियो ने कहा-आज हम बडी आशा से राजगृह नगर आये थे, लेकिन हमारी आशा निराशा मे परिणत हो गयी।
दासियो ने पूछा-क्या हुआ?
व्यापारी-हम लोग धनाढ्यो की नगरी राजगृह मे सोलह रत्न-कम्बल बेचने के लिए आये हैं। इन रत्न-कम्बलो मे अत्यधिक विशेषता है कि इन्हे शीत ऋतु मे ओढने पर सर्दी नहीं लगती। ग्रीष्म ऋतु मे धारण करने पर गर्मी नहीं लगती। ये कम्बल यदि मैली हो जाये तो इन्हे अग्नि मे डाला जा सकता है। अग्नि मे डालने पर ये जलेगी नहीं, अपितु परिष्कृत बन जायेगी। इन कम्बलो को हमने जीवन-भर परिश्रम करके बनाया है, लेकिन राजा श्रेणिक द्वारा भी नहीं खरीदे जाने पर हम अत्यन्त क्षुब्ध बने हुए है।
दासियो ने कहा-चलो, हमारे साथ भद्रा सेठानी तुम्हारी कम्बलो को खरीद लेगी। व्यापारी-जब राजा श्रेणिक नहीं खरीद सका तो भद्रा भद्रा
क्या खरीद लेगी?
दासियॉ-आप चलो तो सही, स्वय ही जान जाओगे | व्यापारी दासियो के साथ भद्रा के घर की ओर रवाना हुए। वे भद्रा के महल की छटा को देखकर स्तब्ध रह गये। ऐसा दिव्य महल उन्होने भूमण्डल पर कही देखा नहीं था। दासियो के साथ व्यापारियो ने प्रथम मजिल मे प्रवेश किया। वहाँ की साज-सज्जा देखकर व्यापारी अत्यन्त विस्मित हुए। तब दासियो ने बतलाया कि यह मजिल हम लोगो के रहने की है। यह सुनकर व्यापारी चित्रलिखित-से रह गये।
जब दूसरी मंजिल मे प्रवेश किया तो उसकी रमणीयता प्रथम मंजिल से