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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 9 शक्रेन्द्र अपने ज्ञान से भगवान् की विहार यात्रा सुधर्मा सभा मे बैठा चित्रपट की मॉति देख रहा है। भगवान् विहार करते हुए मध्यम पावा के महासेन उद्यान मे जाने को समुद्यत है। शनै -शनै कदमो से उन्होने पावा के महासेन उद्यान मे असख्य देवियो और देवो सहित प्रवेश किया। __ महासेन का यह उद्यान आज प्रभु के पदार्पण से पुण्य-पुञ्ज-सा आभासित हो रहा है। अपनी हरीतिमा से अतीव शोभायमान होता हुआ यह अनेक प्राणियो का आश्रय-स्थल बना हुआ है। विशालकाय पादपो का समूह सघन पत्तो से परिवृत, फल-फूलो से लदी डालियो से पृथ्वी-तल को चूमने-सा लगा है। नव-आगन्तुक मजरियो ने प्रभु के पधारने से अपने यौवन के उत्कर्ष को प्राप्त-सा कर लिया। पक्षियो के वृन्द अपने-अपने घोसलो मे प्रभु-सम्मिलन से मत्र-मुग्ध बने हुए भगवान् का स्वागत करते हुए चहचहाट करने लगे। मधुकरोख की मधुर गुञ्जार की मनोरम ध्वनि प्रभु के आगमन पर पलक-पावडे बिछाने लगी।
स्थान-स्थान पर फहराने वाली ध्वजाएँ मानो कैवल्यज्ञान रूपी विजय का प्रदर्शन करने लगी। बावडियो पर बने सुरम्य झरोखो से छनकर आने वाली मन्द-मन्द समीर शीतलता प्रदान करती हुई प्रभु के चरण चूमने लगी। ऐसे सुरम्य वातावरण मे भगवान् ने महासेन उद्यान मे आश्रय ग्रहण किया और तप-सयम से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे।
प्रकृति के अचल मे पलने वाली मध्यम पावा नगरी का कण-कण पावनतम बन रहा है। प्राची" दिशा सिन्दूरी रग से रगी हुई सूर्य को प्रकट करने की तैयारी मे संलग्न है। सुमेरु की प्रभा से अरुणाभ बना दिनकर धीरे-धीरे निकलता हुआ अपनी अरुण किरणो से वसुन्धरा को अरुणाभ बना रहा है। खगो मे नभ मे उडने की होड-सी लग रही है। तभी शक्रेन्द्र का आसन यकायक कम्पायमान होता है। (शक्रेन्द्र चिन्तन धारा में) अरे यकायक
यह क्या आसन प्रकम्पित हो रहा है? क्यो? (तुरन्त अपने अवधिज्ञान का उपयोग लगाकर) हाँ हाँ आज तो मध्यम पावा
(क) आभासित-प्रकाशित, दृष्टिगत (ख) मधुकर-भ्रमर (ग) प्राची-पूर्व (घ) अरुणाम-लाल आभा वाला (ङ) अरुण-लाल