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________________ 10 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय मे समवसरण की रचना करनी है। अभी आभियोगिक देवो को बुलाता हूँ। तुरन्त आभियोगिक देवो को बुलाया। - आभियोगिक देव आकर-शक्रेन्द्र की जय हो। आपका आदेश पाकर हम श्रीचरणो मे आये हैं। आप हमारे योग्य सेवाकार्य फरमाइये। ___शक्रेन्द्र-तुम मध्यम पावा जाओ और समवसरण की रचना के लिए भूमि परिमार्जित' आदि करो। आभियोगिक देव-"जैसी प्रभु की आज्ञा।" यो कहकर, ईशान कोण की ओर चले गये। वहाँ जाकर वैक्रिय शरीर बनाने के लिए पवैक्रिय समुदघात किया। उससे उन्होने सख्यात योजन का रत्नमय दण्ड बनाया। उस रत्नमय दण्ड बनाने के लिए आभियोगिक देवो ने 1 कर्केतन रत्न, 2 बज रत्न, 3 वैडूर्य रत्न, 4 लोहिताक्ष रत्न, 5 मसारगल्ल रत्न, 6 हसगर्भ रत्न, 7 पुलक रत्न, 8 सौगन्धिक रत्न, 9 ज्योति रत्न, 10 अजन रत्न, 11 अजन पुलक रत्न, 12 रजत रत्न, 13 जातरूप रत्न, 14 अंक रत्न, 15 स्फटिक रत्न और 16 रिष्ट रत्न-इन सोलह रत्नो के बादर (असार-अयोग्य) पुद्गलो को दूर किया। यथासूक्ष्म (सारभूत) पुदगलो को ग्रहण किया। इसके पश्चात् पुन वैक्रिय समुद्घात किया और वैक्रिय समुद्घात करके उत्तर वैक्रिय शरीर बनाया" और तत्पश्चात् अत्यन्त त्वरित गति से वे मध्यम पावा के महासेन वन उद्यान मे आये। द्वितीय समवसरण मध्यम-पावा वहाँ आकर श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा" की, आदक्षिणा-प्रदक्षिणा करके वदन-नमस्कार किया। वदन-नमस्कार करके भगवान् से कहा-हम शक्रेन्द्र के आभियोगिक देव आप देवानुप्रिय को वदन करते हैं, नमस्कार करते हैं। आपका सत्कार-सम्मान करते हैं। आप कल्याण रूप हैं, मगल रूप हैं, देव रूप हैं, चैत्य रूप हैं, आप देवानुप्रिय की हम पर्युपासना करते हैं। 'आभियोगिक देवो द्वारा यो कहे जाने पर भगवान् महावीर उन्हें सम्बोधित करते हुए फरमाते हैं-हे देवो | यह प्राचीनकाल से, देव-परम्परा से चला आ (क) समवसरण-भगवान् का प्रवचन स्थल, जो देव निर्मित होता है। (ख) आभियोगिक-नोकर देवों की एक जाति निम्न श्रेणी के देव जो विद्याधरो की श्रेणी से ___10 योजन ऊँचा आभियोगिक देवो के रहने का स्थान है।। (ग) परिमार्जित-स्वच्छ (घ) वैक्रिय समुद्घात-वैक्रिय शरीर निर्माण योग्य पुद्गलो का प्रवलता मे घात करना। इस प्रक्रिया के बाद उत्तर वैक्रिय शरीर बनता है, जिसको वनाकर ही देव भूमण्डल पर आते है। (ड) त्वरित-शीघ्र
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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