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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 227 है, उसके पश्चात् अचित्त, अबीज हो जाती है। धान्य की योनि की सचित्तता और अचित्तता विषयक जिज्ञासा का समाधान प्राप्त कर गौतम गणधर के मन मे काल सम्बन्धी जिज्ञासा प्रादुर्भूत हुई तब उन्होने भगवान् से काल सम्बन्धी प्रश्न करते हुए पृच्छा कि - भगवन् ! एक मुहूर्त के कितने उच्छ्वास कहे गये है? भगवान्-असख्यात समयो की एक आवलिका होती है। सख्यात आवलिका का एक उच्छवास और सख्यात उच्छवास का एक नि श्वास होता है। वृद्धावस्था रहित हृष्ट-पुष्ट प्राणी का एक उच्छवास और एक निश्वास, इन दोनो को मिलाकर एक प्राण होता है। सात प्राणो का एक स्तोक, सात स्तोक का एक लव, 77 लवो का एक मुहूर्त होता है अर्थात् 3773 श्वासोच्छवास का एक मुहूर्त होता है। तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र होता है। पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष होता है। दो पक्ष का एक मास होता है। दो मास की एक ऋतु होती है। तीन ऋतु का एक अयन होता है। दो अयन का एक सवत्सर होता है। पॉच सवत्सर का एक युग होता है। बीस युग का एक सौ वर्ष होता है। दस सौ वर्ष का एक हजार वर्ष होता है। सौ हजार वर्ष का एक लाख वर्ष होता है। चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वांग होता है। चौरासी लाख पूर्वांग का एक पूर्व होता है। चौरासी लाख पूर्व का एक त्रुटिताग होता है। चौरासी लाख त्रुटिताग का एक त्रुटित होता है। चौरासी लाख त्रुटित का एक अउडाग होता है। चौरासी लाख अउडाग का एक अउड होता है। चौरासी लाख अउड का एक अववाग होता है। चौरासी लाख अववाग का एक अवव होता है। चौरासी लाख अवव का एक काग होता है। चौरासी लाख हूहूकाग का एक हूहूक होता है। चौरासी लाख हूहूक का एक उत्पलाग होता है।
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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