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________________ 226 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग- द्वितीय अनुत्तरज्ञानचर्या का चतुर्थ वर्ष अनुरागी मन बना वैरागी गौतम पृच्छा : भगवान् महावीर वाणिज्यग्राम का वर्षावास सम्पन्न कर वहाँ के दूतिपलाश चैत्य से विहार कर ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए मगध देश पधार गये । वहाँ के विभिन्न क्षेत्रो मे धर्म-ध्यान, त्याग तप की उज्ज्वल ज्योति प्रज्वलित कर प्रभु राजगृह' के गुणशील चैत्य मे पधार गये । भगवान् का आगमन जानकर परिषद् धर्मोपदेश श्रवण करने हेतु आई और वीतराग प्रभु की अमृत देशना श्रवण कर पुन लौट गयी । तब भगवान् के प्रधान अन्तेवासी इन्द्रभूति गौतम के मन मे जिज्ञासा प्रादुर्भूत हुई। वे समाधान हेतु प्रभु चरणो मे समुपस्थित हुए, उन्होने भगवान् के चरणो मे वन्दन-नमस्कार करके पृच्छा की - भगवन् । शाली (कमल आदि जातिसम्पन्न चावल), ब्रीहि (सामान्य चावल ). गोधूम (गेहूँ), यव (जौ) तथा यवयव ( विशिष्ट प्रकार का जौ) इत्यादि अन्न-धान्य के कोठे में, बॉस के पल्ले (छबडे) मे, मच (मचान) पर, माल (बर्तन) मे डालकर रखे हों, गोबर से उनके मुख उल्लिप्त (विशेष प्रकार से लीपे हुए हों, लिप्त हो, ढके हुए हों, मुद्रित (छदित) किये हुए हो, लाछित (सील लगाकर चिह्नित ) किये हुए हो तो उन धान्यो की योनि (उत्पत्ति की शक्ति) कितने काल तक सचित्त रहती है? भगवान् हे गौतम ! उनकी योनि कम से कम अन्तर्मुहूर्त अधिक से अधिक तीन वर्ष तक सचित्त रहती है। उसके पश्चात् उन धान्यो की योनि म्लान, विध्वसित, अचित्त, अबीज हो जाती है। इतने समय पश्चात् उस योनि का विच्छेद हो जाता है, उसमे उगने की शक्ति नहीं रहती । गौतम-भगवन् । कलाय, मसूर, तिल, मूँग, उडद, बालोर, कुलथ, आलिसन्दक (एक प्रकार का चवला) 2 तुअर, पलिमथम (गोल चना) इत्यादि धान्यो की योनि कोठे इत्यादि मे रखी हो तो कितने काल तक सचित्त रहती है? भगवान् गौतम । कम से कम अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पाँच वर्ष तक सचित्त रहती है, उसके पश्चात् अचित्त, अबीज हो जाती है । 1 गौतम-भगवन् ! अलसी, कुसुम्भ, कोद्रव, कॉगणी, बरट, राल, सण, सरसो, मूलक बीज (एक जाति के शाक के बीज) आदि धान्यो की योनि कोठे इत्यादि मे रखी हुई कितने काल तक सचित्त रहती है? भगवान्–गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट सात वर्ष तक सचित्त रहती
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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