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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 223 _शास्त्र मे स्फोटन कर्म की व्याख्या करते हुए कहा है कि
सरः कूपादि खनन-शिला कुट्टन कर्मभिः।
पृथित्यारम्भ संभूते जीवनं स्फोट जीविका। अर्थात् तालाब, कुएँ आदि खोदना, शिला कुट्टन आदि से पृथ्वीकाय का आरम्भ समारम्भ करना स्फोटन कर्म है। xxVII पौषध
पौषध के निमित्त दोष – (1) सरस आहार करना (2) अब्रह्म सेवन करना, (3) केश नख काटना, (4) वस्त्र धुलाना, (5) शरीर मण्डन करना, (6) सरलता से न खुलने वाले आभूषण पहनना।
पौषध ग्रहण करने के पश्चात् लगने वाले दोष - 1 पौषध के पूर्व दिन ठूस-ठूस खाना। 2 पौषध मे प्रवेश करने से पूर्व
नख-केश आदि की सजाई करना । 3 पौषध के पूर्व दिन मैथून सेवन करना। 4 पौषध के विचार से वस्त्रादि धोना-धुलवाना। 5 पौषध करने के लिए शरीर की स्नानादि विभूषा करना। 6 पौषध की निमित आभूषण पहनना। 7 अविरती मनुष्य से अपनी सेवा करवाना। 8 शरीर का मैल उतारना। 9 बिना पूजे खाज खुजलाना। 10 दिन मे और प्रहर रात गये के पूर्व नीद लेना तथा रात्रि के पिछले प्रहर उठकर धर्म-जागरण नहीं करना। 11 बिना पूजे परठना। 12 निदा विकथा करना, हसी-ठट्ठा करना-कराना। 13 सासारिक विषयो की चर्चा करना । 14 स्वय डरना या दूसरो को डराना। 15 क्लेश करना। 16 अयतना से बोलना। 17 स्त्री के अगो-पांग निरखना, मोहक दृश्य देखना, मोहक राग सुनना, सुगन्ध सूघना आदि । 18 सासारिक सम्बन्ध से किसी को पुकारना। इन 18 दोषो से रहित पौषध करना
चाहिये। XXIX संलेखणा
सलेखणा आत्मघात नहीं है, क्योकि आत्मघात क्रोधादि कषायो के उदय से होता है जबकि सलेखणा स्वेच्छापूर्वक किया गया समाधिमरण है। आत्मघात तो पुष्ट शारीरिक स्थिति मे भी होता है जबकि सलेखणा शरीर के, जव टिकने की स्थिति नहीं लगती, तब होती है। xxx दानयोग्य 14 वस्तुएँ 1 अशन - खाये जाने वाले पदार्थ रोटी आदि। पान
पीने योग्य पदार्थ जल आदि। 3 खादिम मिष्टान्न, मेवादि सुस्वादु पदार्थ । 4 स्वादिम - मुख की स्वच्छता के लिए लांग, सुपारी आदि।