________________
222 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय ऐसे सब व्रतो मे इसी प्रकार से सुज्ञजन समझ लेवे ।
उपासकदशाक, अभयदेव टीका, पृ 27 XXIV "क्षेत्रवास्तु प्रमाणातिक्रम"
धान्योत्पत्ति की जमीन को क्षेत्र (खेत) कहते है। वह दो प्रकार का होता है - सेतु और केतु
अरघट्टादि जल से जो खेत सीचा जाता है, वह सेतु क्षेत्र है। वर्षा का पानी गिरने पर जिसमे धान्य पैदा होता है, वह केतु क्षेत्र कहलाता है। घर आदि को वास्तु कहते है। भूमिगृह (भोयरा) प्रासाद और भूमि के ऊपर बना हुआ घर या प्रासाद वास्तु है।
__ हरिभद्रीय आवश्यक, पत्राक 826, धर्मसग्रह, अधिकार 2. पृ105 से 07 XxV दासों के नाम
निशीथ चूर्णि (11 3676) मे गर्भदास, क्रीतदास अऋण (ऋण न दे सकने के कारण) दास, दुर्भिक्षदास, सापराध-दास और रूद्धदास (कैदी) के उल्लेख मिलते हैं। XXVI दिग्व्रत-दिशाव्रत
यद्यपि व्रत ग्रहण के प्रसग से दिग्व्रत एव शिक्षाव्रतो के ग्रहण का उल्लेख नही है तथापि आनन्द श्रावक ने पूर्व मे कहा था कि मैं बारह प्रकार के श्रावक व्रत ग्रहण करना चाहता हूँ और बाद मे भी वर्णन मिलता है कि उसने बारह प्रकार के श्रावक व्रतो को ग्रहण किया। इसलिए उल्लेख न होने पर भी उनका ग्रहण समझना चाहिये।
सामायिक आदि शिक्षाव्रत एव दिग्व्रत स्वल्पकालीन होने से प्रतिनियत समय मे ही करने के है इसलिए व्रत लेते समय स्वीकत नही किये, किन्तु बाद में अवश्य स्वीकार किया होगा।
उपासकदशाग, अभयदेववृत्ति, पत्राक 38 XxVII स्फोटनकर्म
धीरजलाल टोकर शी शाह ने भी खेती को सर्वोत्तम व्यवसाय माना है, उसने खेती को व्यापार का आधार भी माना है।
___ महावीर के दस श्रावक, धीरजलाल टोकर शी शाह कृषि स्फोटन कर्म नही है क्योकि खेती मे भूमि कुरेदी जाती है, फोडी नही। कृष धातु कुरेदने अर्थक विख्यात है। आनन्द आदि श्रावक स्वय खेती करते। वह पन्द्रह कर्मादान का सर्वथा त्यागी था। अतएव शास्त्रीय प्रमाण से खेती कर्मादान नही है।
विशेष विवरण के लिए देखिये, जिणधम्मो, अहिसा विवेक । आचार्य हेमचन्द्र ने भी कृषि को कर्मादान नही माना है उन्होने अपने योग