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________________ 196 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय 4 बतलाना । मत्सरिता-दूसरो ने इस प्रकार का दान दिया तो क्या मैं कजूस हूँ, जो इस प्रकार का दान नहीं दे सकता। इस प्रकार ईर्ष्याभाव से दान देना । ये पाँच-पाँच अतिचार प्रत्येक व्रत के बतलाये हैं, य सब उपलक्षण भाव मात्र हैं। अतएव अतिचार के अनेक भेद सभव हैं। ये अतिचार मात्र प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से होते हैं क्योकि सर्वविरति के लिए एकमात्र सज्वलन कषाय ही देशघाती है। शेष अनन्तानुबधी आदि बारह कषाय तो सर्वघाती हैं, उनके उदय से मूल व्रत भग हो जाता है । 5 तदनन्तर अपश्चिम मारणान्तिक सलेखणा झूषणा के पाँच अतिचारो को जानना चाहिए लेकिन उनका आचरण नहीं करना चाहिए । को अन्तिम समय मे मारणान्तिक- मरणपर्यन्त सलेखना- शरीर और कषायो कृश करके झूषणा, उसकी सेवना, आराधना करना सलेखनाXXX है। उसके पाँच अतिचार हैं । यथा 1 की भावना रखना। ऊपर से दातार बनने का अभिनय करना किन्तु भीतर दान देने की भावना नहीं होना । परव्यपदेश-दान न देने की भावना से स्वय की वस्तु दूसरो की 2 3 4 इहलोकाशसा प्रयोग - मनुष्यलोक मे सेठ, राजा, मंत्री आदि ऋद्धि वाले मनुष्य होने की इच्छा करना । परलोकाशसा प्रयोग-परलोक मे देव, देवेन्द्र होने की अभिलाषा करना । जीविताशसा प्रयोग - सलेखणा सथारा लेने से लोगो मे अत्यधिक यशकीर्ति होते देखकर सोचना कि मै अधिक समय तक जीवित रहूँ तो अच्छा है। मरणाशसा प्रयोग - अपनी यश कीर्ति नहीं होने से जल्दी मरने की इच्छा करना । 5 कामभोगाशसा प्रयोग - मनुष्य सम्बन्धी दिव्य कामभोगों की अभिलाषा करना । इस प्रकार प्रभु के मुखारविन्द से इन अतिचारो को श्रवण करके आनन्द श्रावक ने श्रावक के आचरण करने योग्य बारह व्रतो को ग्रहण किया ओर प्रभु को वदन- नमस्कार करके वह भगवान् से कहने लगा - भगवन् ! आज से निर्ग्रन्थ धर्मसंघ के अतिरिक्त अन्य सघो से सम्बद्ध पुरुषां को, उनके देवों को, उनके साधुओं को वन्दन - नमस्कार करना, उनके पहले बिना बोले उनसे बातचीत करना, उन्हे अशन- रोटी आदि, पान-पानी, दूधादि, खादिम-फल- मेवा आदि, स्वादिम-लोग, इलायची, मुखवासादि वस्तुएँ धर्म समझ
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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