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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 195 2 प्रेष्य प्रयोग-मर्यादित क्षेत्र के बाहर के कार्यों को सम्पादित करने हेतु भेजकर आदेश करना कि वहाँ जाकर मेरी गाय ले आना या अमुक काम कर देना। शब्दानुपात-मर्यादित क्षेत्र का कार्य ध्यान मे आने पर पास मे रहने वाले को खॉसी आदि करके सूचित करना। रूपानुपात-मर्यादित क्षेत्र के बाहर का कार्य करने के लिए अपना रूप बनाकर अगुली आदि से सकेत करना। 5 बा.हि पुद्गल प्रक्षेप-मर्यादित क्षेत्र के बाहर का काम करने के लिए ककर आदि फेककर दूसरो को सूचित करना। तदनन्तर श्रमणोपासक के पौषध व्रत के पॉच अतिचारो को जानना चाहिए, लेकिन उनका आचरण नहीं करना चाहिए। 1 अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित शय्या-सस्तारक-शय्या (शयन का स्थान) और सस्तारक (बिछौना) बिना देखे या अच्छी तरह से न देखे गये स्थान और सस्तारक का पौषध में उपयोग करना। 2 अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित शय्या-सस्तारक-बिना प्रमार्जन किये या अच्छी तरह से प्रमार्जन नहीं किये गये शय्या-सस्तारक का पौषध मे उपयोग करना। 3 अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित उच्चार-प्रस्रवण भूमि-बिना देखी या अच्छी तरह से न देखी उच्चार (मल प्रस्रवण मूत्र विसर्जन) भूमि का उपयोग करना। अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित उच्चार प्रस्रवण भूमि-बिना पूजे या अच्छी तरह से न पूजी गयी उच्चार प्रस्रवण भूमि का उपयोग करना। 5 पौषधव्रत का सम्यक् अननुपालन-उपवास युक्त पौषध का सम्यक रूप से पालन नहीं करना XVIm तदनन्तर अतिथि-सविभाग व्रत के पॉच अतिचार श्रमणोपासक के जानने योग्य हैं, लेकिन आचरण करने योग्य नहीं हैं। यथा - 1 सचित्त निक्षेपण-साधु को दान न देने की इच्छा से निर्दोष आहार को सचित्त आहार मे रखना। 2. सचित्तापिधान-साधु को आहार न देने की इच्छा से आहारादि को सचित्त फलादि से ढंकना। 3 कालातिक्रम-साधुओ की भिक्षा का समय व्यतीत होने पर भिक्षा देने
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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