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194 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय
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15 असतीजन पोषणता - दुष्ट, व्यभिचारिणी स्त्री का पोषण करके उसके व्यापार से आजीविका चलाना ।
तदनन्तर आठवे अनर्थदंड व्रत के पाँच अतिचार श्रावक के जानने योग्य हैं, लेकिन आचरण करने योग्य नहीं हैं -
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सरहदतडाग शोषणता - जलाशय, तालाब आदि को सुखाने का धधा
करना ।
2 कौत्कुच्य - विकृत चेष्टाएँ करना ।
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मौखय-निर्लज्ज होकर व्यर्थ की बाते बनाना, बकवास करना और असत्य वचन बोलना मौखर्य है । सयुक्ताधिकरण - ऊखल, मूसल, शस्त्रादि हिसामूलक साधनो को इकट्ठा
करना ।
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कदर्प-काम-विकार पैदा करने वाले, राग- मोहोद्दीपक हास्यजनक वचन बोलना कदर्प अतिचार है।
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अब सामायिक व्रत के पाँच अतिचार जानने योग्य हैं, लेकिन आचरण करने योग्य नहीं हैं ।
उपभोग - परिभोगातिरेक- उपभोग, परिभोग सम्बन्धी सामग्री को अनावश्यक एकत्रित करना ।
1 मन दुष्प्रणिधान - सामायिक लेने के पश्चात् गृह सम्बन्धी शुभाशुभ कार्य का चितन करना ।
वचन दुष्प्रणिधान - सामायिक मे सावद्य कठोर वचन बोलना । काय दुष्प्रणिधान - बिना प्रमार्जन किये बैठना आदि ।
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सामायिक स्मृत अकरणता - सामायिक का समय विस्मृत हो जाना कि मैंने सामायिक कब ली अथवा सामायिक ली या नहीं ली । सामायिक अनवस्थित करणता - सामायिक का समय पूर्ण हुए चिना सामायिक पार लेना अथवा बिना इच्छा सामायिक करना । इन पाँच अतिचारो मे से पहले के तीन अतिचार बिना उपयोग के कारण लगते हैं और अन्तिम दो प्रमाद की बहुलता से लगते हैं।
इसके अनन्तर दसवाँ देशावकाशिक व्रत है, जिसके पाँच अतिचार जानने योग्य है, न कि आचरण योग्य हैं। यथा
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आनयन प्रयोग - जितनी भूमि की मर्यादा की है, उससे अधिक भूमि से सचित्तादि द्रव्य किसी से मँगवाना या सदेशा भेजकर मॅगवाना ।