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________________ 188 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय परित्याग करता हूँ। 14 ओदन-विधि-कलम सालि (वासमती) चावलो के अतिरिक्त सभी प्रकार के चावलो का परित्याग करता हूँ। 15 सूप-विधि-मटर, मूंग और उड़द की दाल के अतिरिक्त सभी दालो का परित्याग करता हूँ। 16 घृत-विधि-शरद ऋतु के गोघृत के अतिरिक्त समस्त गोघृत का परित्याग करता हूँ। शाक-विधि-बथुआ, लौकी, सुआपालक और भिण्डी इन चार के अतिरिक्त समस्त सब्जियो का त्याग करता हूँ। 18 माधुरक-विधि-पालग माधुरक-शल्ल की वृक्ष के गोद से बनाये हुए मधुर पेय के अतिरिक्त अन्य सभी मधुर पेयो का परित्याग करता हूँ। 19 व्यजन-विधि-कॉजी बर्ड, खटाई युक्त मूंग की दाल के पकौडे के अतिरिक्त सब प्रकार के चटपटे पदार्थो का परित्याग करता हूँ। 20 पाणिय-विधि-आकाश से गिरे वर्षा के पानी के अतिरिक्त सब प्रकार के पानी का परित्याग करता हूँ। 21 मुखवास-विधि-पॉच सुगधित वस्तुओ सहित मुख को सुगधित करने वाले सभी पदार्थो का परित्याग करता हूँ। यथा- इलाचयी, लोग, कर्पूर, ककोल, जायफल (शीतल चीनी)/XXI अनर्थदण्ड-विरमण : तदनन्तर आनन्दजी ने चार प्रकार के अनर्थदण्ड-अपध्यानाचरित, प्रमादाचरित, हिस्रप्रदान और पापकर्मोपदेश का प्रत्याख्यान किया। तदनन्तर भगवान् महावीर ने श्रमणोपासक आनन्द से कहा-आनन्द | जिसने जीवादि नौ पदार्थो को जान लिया, जो स्वय पुरुषार्थी है, जिसे देव, दानव, मानव भी अपने धर्म से विचलित नहीं कर सकते, उसको सम्यक्त्व के पाँच प्रधान अतिचारो को जानना चाहिए, लेकिन उनका आचरण नहीं करना चाहिए। 1 शका-जिनेश्वर वचनो मे सदेह रखना शका है। इस शका से श्रद्धा डोलायमान हो जाती है। यद्यपि जिज्ञासा बुद्धि से शका करना अतिचार नहीं है, तथापि सदैव यही चितन रहना चाहिए कि वही सत्य और नि शक है, जो भगवान् ने फरमाया है। काक्षा-बाहरी आडम्बर या दूसरे प्रलोभनो से प्रभावित होकर अन्य मत की ओर झुकना काक्षा है। यह सम्यक्त्व को दूषित करने वाली प्रकृति है। इससे सदैव दूर रहना चाहिए। 2
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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