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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 185 मुण्डित होकर साधु बनता है। वह प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह एव रात्रि भोजन का सर्वथा त्यागी होता है। इस प्रकार पचमहाव्रत अगीकार कर उनका पालन करने वाले साधु-साध्वी निर्ग्रन्थ धर्म के आराधक होते है। आगार धर्म बारह प्रकार का है-पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत। पाँच अणुव्रत-1 स्थूल (मोटे रूप में) प्राणातिपात का त्याग, 2 स्थूल मृषावाद विरमण, 3 स्थूल अदत्तादान से निवृत्ति, 4 स्वदार सतोष-परिणीता पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियो के साथ रतिक्रीडा का परित्याग, 5 अपरिग्रह-परिग्रह की सीमा करना। ____ तीन गुणव्रत-1 अनर्थदण्ड विरमण-आत्मगुण घातक निरर्थक प्रवृत्तियो का त्याग करना, 2 दिग्व्रत-छहो दिशाओ मे जाने की मर्यादा करना, 3 उपभोग-परिभोग-विरमण । उपभोग-जिन्हे एक बार भोगा जा सके ऐसे पदार्थ, जैसे भोजनादि, परिभोग-जिन्हे अनेक बार भोगा जा सके ऐसे पदार्थ, जैसे वस्त्रादि, इनकी सीमा करना। चार शिक्षाव्रत-1 सामायिक-समत्व भाव की साधना के लिए 48 मिनिट तक सावद्य प्रवृत्ति का त्याग करना, 2 देशावकाशिक- दिशाओ की मर्यादा करना 3 पौषधोपवासवृत्त-धर्म एव अध्यात्म को पुष्ट करने वाले विशेष नियम धारण करके उपवास सहित पौषध करना। 4 अतिथिसविभाग-साधक या साधार्मिक को 14 प्रकार की वस्तुएँ आदरपूर्वक देना। अन्तिम समय मे सलेखणा सथारापूर्वक देह-त्याग का लक्ष्य रखना। यह गृहस्थ धर्म के बारह प्रकार हैं, जिनकी आराधना कर अनेक श्रमणोपासक, श्रमणोपासिकाएँ आज्ञा के आराधक होते है। इस प्रकार भगवान ने अपनी दिव्य देशना प्रवाहित की जिसे श्रवण कर कई मनुष्य अत्यन्त हर्षित एव वैराग्यपरक भावो से ओत-प्रोत हुए। उन्होने उसी समय गृहत्याग कर श्रमण धर्म अगीकार कर लिया। कई मनुष्यो ने श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये।1० शेष परिषद ने भी भगवान को वदन-नमस्कार करके भगवान् के यशोगान करते हुए कहा - आपका हृदयस्पर्शी प्रवचन अन्तस्थल को छूने वाला है, आपने जो धर्मोपदेश दिया वह अनुत्तर (श्रेष्ठ) है। आपने कषाय त्याग कर, विवेक धारण कर, आगार और अणगार धर्म ग्रहण करने हेतु जो ज्ञान-गगा प्रवाहित की है, वह अन्य कोई श्रमण, ब्राह्मण प्रवाहित नहीं कर सकता। इस प्रकार भगवान् की यश गाथा गाकर परिषद् और राजा पुन लौट गये। तब आनन्द श्रावक, जिसका हृदय हर्षातिरेक से प्रभु के प्रति समर्पित बन रहा था, उसने भगवान महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा करके (क) अणगार- साधु
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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