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________________ 184 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय से अलकृत रहकर वहाँ की ऋद्धि का उपभोग कर मनुष्य भव प्राप्त करके निर्वाण को प्राप्त करते है। परिणामो की विषमता से जीव भिन्न-भिन्न आयु का बध करते हैं। जीव अपने कलुषित परिणाम होने से नरकायु का बध करता है। नरकायु बध के चार कारण हैं, यथा- 1 महाआरभ-घोर हिसा के भाव रखना या घोर हिसा करना, 2 महापरिग्रह-पदार्थो के प्रति अत्यधिक मूर्छा भाव रखना, 3 पचेन्द्रिय वध-मनुष्य या तिर्यंच पचेन्द्रिय जीवो का घात करना और 4 मास-भक्षण। चार कारणो से जीव तिर्यंच योग्य आयु का बध करता है-1 माया करना, 2 अलीक वचन-असत्य भाषण करना, 3 अत्कचनता-अपनी धूर्तता को छिपाना, 4 वचनता-प्रतारणा या ठगी करना। चार कारणो से जीव मनुष्य योग्य आयु का बध करता है-1 प्रकृति भद्रता-भद्रिक-सरल प्रकृति का होना, 2 प्रकृति विनीतता-स्वाभाविक विनय प्रकृति होना, 3 सानुक्रोशता-दयाशील, करुणाशील प्रकृति होना, 4 अमत्सरता-ईर्ष्या का अभाव होना। ___ चार कारणो से जीव देवगति मे उत्पन्न होता है-1 सराग सयम-सरागी साधु का सयम, 2 सयमासयम-देशविरति श्रावक धर्म पालन, 3 अकाम-निर्जरा-बिना मोक्षाभिलाषा के अथवा विवशतावश कष्ट सहना, 4 बाल-तप-अज्ञानजनित तप करना। इस प्रकार जीवन अपने ही परिणामो से एव आचरणो से नरकादि गतियों मे जाता है। नरक गति मे जाने वाला भीषण नारकीय यातना को प्राप्त करता है। तिर्यंच योनि मे जाने वाला अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक दुख को प्राप्त करता है। मनुष्य-जीवन भी अनित्य है। उसमे व्याधि, वृद्धावस्था, मृत्यु और अनेक प्रकार की वेदनाओ सम्बन्धी बहुत कष्ट होते हैं। देवलोक मे दिव्य ऋद्धि एव दिव्य सुख का अनुभव करते हैं, लेकिन वहाँ भी राग-द्वेषजन्य दुख-परम्परा बनी रहती है। राग-द्वेष आदि कारणो से जीव बधन को प्राप्त करते हैं और कषाय- विजयी बनकर मुक्ति को प्राप्त करते हैं। अनासक्त व्यक्ति दुखो का अत करते हैं और पीडा, वेदना एव आकुलतायुक्त चित्त वाले दुख-सागर को प्राप्त करते हैं। वैराग्य से कर्मदलिक ध्वस्त होते हैं, जबकि रागादि से कर्मो का फल-विपाक पाप-पूर्ण होता है। कर्म-रहित जीव ही मोक्ष मे गमन करता है। ___ मोक्ष मे गमन धर्म करने से होता है, वह धर्म दो प्रकार का है-1 आगार धर्म और 2 अणगार धर्म। अणगार धर्म में सावध प्रवृत्तियो का परिपूर्ण त्याग कर, गृहवास त्याग कर,
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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