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182 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय विशिष्ट नागरिक), माडबिक (जागीरदार), कौटुम्बिक (बड़े परिवारो के मुखिया), इभ्य (वेभवशाली), श्रेष्ठिन्-सेठ, सेनापति, सार्थवाह (अनेक छोटे व्यापारियो को लेकर देशान्तर यात्रा करने वाले समर्थ व्यापारी) को वह अनेक कार्यो मे, कारणो मे, मत्रणाओ मे, पारिवारिक समस्याओ मे, गोपनीय बातो मे, एकात विचारणीय विषयो मे तथा परस्पर पूछने योग्य विषयो मे सलाह देता रहता था। वह अपने सम्पूर्ण परिवार का मेढीभूत" मुखिया था। उसकी कार्यक्षमता विशिष्ट थी, इसलिए वह सभी का आधारभूत और मार्गदर्शक था। प्रामाणिक व्यक्तित्व वाला वह सब कार्यों को आगे बढ़ाने वाला था।
उसकी शिवानन्दा नामक पत्नी प्रतिपूर्ण इन्द्रियो वाली उत्तम Vi"लक्षण-व्यजन-गुणसम्पन्न सर्वाग सुन्दरी थी। वह सौम्य, कमनीय और रूप-लावण्य की प्रतिमूर्ति थी। आनन्द गाथापति को इष्ट लगने वाली वह अपने पति के प्रति अत्यन्त अनुरागशील थी। वह आनन्द गाथापति के प्रतिकूल होने पर भी सदैव उनके अनुकूल रहती थी। भर्ता की इच्छानुसार शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गधमूलक-पाँच प्रकार के सासारिक भोगो को भोगती हुई रहती थी।
वाणिज्यग्राम के ईशानकोण मे कोल्लाक नामक सन्निवेश था। वहाँ आमोद-प्रमोद के साधनो की प्रचुरता होने से वहॉ के नागरिक एव अन्य आगन्तुक व्यक्ति प्रसन्न रहते थे। घनी आबादी वाले उस कोल्लाक सन्निवेश में अनेक खेत थे, जिनमे ईख, जौ आदि धान की फसले लहलहाती थी। गाय-भैसादि की प्रचुरता के साथ शिल्पकला के उत्कृष्ट नमूने, वहाँ के चैत्य, दर्शको का मन मुग्ध करने वाले थे। चुंगी आदि के कर-रहित वहॉ रिश्वतखोरो, जेबकतरो और चोरो का अभाव होने से सदैव शाति का माहौल रहता था। वहाँ साधुओ को भिक्षा सुखपूर्वक मिलती थी, इसलिए लोग वहॉ निवास करने मे स्वय को सुखी मानते थे। अनेक प्रकार के नृत्य, नाटक, बाजीगर आदि खेल-तमाशे दिखाने वाले वहाँ आजीविका कमाते थे। जगह-जगह बने हुए उद्यान, बावडियाँ आदि से सुशोभित वह नन्दन वन समान रमणीय लगता था।
चहुंओर कगूरेमय तोरणो और द्वारो से परिमण्डित परकोटे से घिरे हुए उसके कपाट अत्यन्त सुदृढ थे, जिनके बद होने पर शत्रु का प्रवेश असम्भव था। वहाँ के बाजार मे अनेक प्रकार की दुकाने थी जिनमे विविध प्रकार की सामग्रियाँ उपलब्ध होती थीं। राजा की सवारी अकसर निकलने के कारण राजमार्गो पर भीड बनी रहती थी। वहाँ हाथी, घोडे, यान और वाहनो का जमघट-सा रहता था। कमलो से सुशोभित जलाशयो का सुगधित पानी मनमोहक था। (क) चैत्य- यक्षायतन
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