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170 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय
अनुत्तर ज्ञानचर्या का तृतीय वर्ष
साहिल मिला भव्यों को मन भाई मृगावती :
वैशाली चातुर्मास मे अनेक भव्यात्माओ को मोक्ष मार्ग पर समारूढ कर भगवान् महावीर वत्स देश मे विचरण करने लगे। वत्स" देश की राजधानी कौशाम्बी उस समय की ऐतिहासिक नगरी थी, जहाँ राजा शतानीक धर्मानुरागी राजा चेटक का जॅवाई था। _राजा शतानीक क्षत्रियोचित गुणो से शोभित, उत्तम कुलोत्पन्न, करुणा की प्रतिमूर्ति था। उसका राज्य-कोष अत्यन्त समृद्ध था। वह दुर्भिक्ष एव महामारी के भय से रहित, निर्विघ्न राज्य का पालन करता था। एक दिन राजा शतानीक ने राज्यसभा मे उपस्थित जनसमुदाय से पूछा-मेरे इस राज्य मे आप लोगो को किस बात की कमी महसूस हो रही है? जनता ने कहा-यहाँ आपके राज्य मे
और किसी बात की कमी नहीं है, लेकिन एक चित्रशाला नहीं है। शतानीक ने कहा-शीघ्र ही यह कमी पूर्ण हो जायेगी।
तत्काल राजा शतानीक ने अनेक चित्रकार बुलाये और उन्हे सजीव चित्रो को बनाने की आज्ञा दी। अनेक चित्रकार अपने कलाकौशल से विचित्र चित्र बनाने लगे। वहाँ उपस्थित चित्रकारो मे एक चित्रकार को यक्ष से वरदान मिला हुआ था। हुआ यो कि उस समय साकेतपुर नगर मे सुरप्रिय यक्ष का यक्षायतन था। उस यक्ष की प्रतिमा को जो भी चित्रकार चित्रित करता, वह उसको मार डालता था और यदि उस यक्ष की प्रतिमा को कोई चित्रित नहीं करता तो वह उस नगर मे महामारी फैला देता। इस प्रकार प्रतिवर्ष एक चित्रकार की हत्या होने लगी। उस विकट परिस्थिति का अवलोकन कर अनेक चित्रकार शनै -शनै नगरी से पलायन करने की तैयारी करने लगे।
ऐसी स्थिति मे साकेतपुर नरेश ने महामारी फैलने के भय से जाते हुए उन चित्रकारो पर रोक लगाई तथा एक व्यवस्था कर दी कि सभी चित्रकारो के नाम चिट्ठियो पर लिखकर घडे मे डाल दिये जाए। प्रतिवर्ष उस घडे मे से एक चिट्ठी निकालते। जिसके नाम की चिट्ठी निकलती, वह उस यक्ष की प्रतिमा को चित्रित करता था।
एक बार कोशाम्बी से एक चित्रकार चित्रकला सीखने के लिए साकेतपुर पहुँचा और एक वृद्धा स्त्री के घर उतरा। उस वृद्धा के एक पुत्र था, उसके साथ उस चित्रकार की मैत्री हो गई क्योंकि वृद्धा का पुत्र भी चित्रकार था। दोनो