________________
अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 169 मे बजाई जाती है) मुरज (महाप्रमाणमर्दल) मृदग (लघुमर्दल) नदी मृदग (एक ओर से सकीर्ण अन्यत्र विस्तृत मुरज विशेष ) आलिग (गोपुच्छाकार मृदग जो एक सिरे से चौडा और दूसरे सिरे से सकरा होता था) कुस्तुव, गोमुखी मर्दल (दोनो ओर से सम) वीणा, विपची (त्रितत्री वीणा ) वल्लवी (सामान्य वीणा ) महती, कच्छभी (भारती वीणा) चित्रवीणा, सबद्धी, सुघोषा, नदिघोषा, आमरी, षड्भरी, वरवादिनी (सप्ततत्री वीणा) तूणा, तुम्बवीणा, आमोद, झञ्झा, नकुल, मुकुन्द (मुरज वाद्य विशेष) हुडुक्का, विचिक्की, करटा, डिडिम, किणित, कडब, दर्दर, दर्दरिका, कलशिका, ! महुया, तल, ताल, कास्यताल रिंगिसिका, लन्तिया, मगरिका, शिशुभारिका, वश, वेणु वाली (तूण विशेष, जो मुख से बजाया जाता था) परिली और बद्धक ।
{
VII चतुष्क
श्रृंगाटक त्रिक- 1 चतुष्क 2 चत्वर 3 चतुर्मुख
हारिभद्रीय आवश्यक वृत्ति, पूर्व भाग, पत्राक - 136 सन् 1917
VIII प्रियदर्शना
सुदर्शना भगवान् की बडी बहिन थी, उसके पुत्र का नाम था जमालि । भगवान् की पुत्री अनवद्या ( प्रियदर्शना) उसकी पत्नी थी । अन्य ऐसा कहते है कि ज्येष्ठा, सुदर्शना, अनवद्या ये जमालि की पत्नी के नाम हैं ।
आवश्यक सूत्र, द्वितीय भाग, मलयगिरि वृत्ति, पत्राक 405