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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 163 तत्पश्चात् जमालिकुमार की धायमाता शरीर को अलकृत कर रजोहरण और पात्र लेकर दाहिनी ओर से शिविका पर चढकर जमालि राजकुमार के बायीं ओर श्रेष्ट भद्रासन पर बैठ गयी।
तब जमालि के पृष्ठ भाग मे (पीछे) शृगार की प्रतिमूर्ति, सुन्दर वस्त्रो से सुसज्जित, चारुक गति वाली, रूप और लावण्य की देवी, कमनीय अग- प्रत्यगो वाली एक उत्तम तरुणी हिम, रजत, कुमुद, कुन्द, पुष्प एव चन्द्रमा के समान श्वेत कोरण्ट पुष्पमाला से युक्त श्वेत छत्र हाथ मे लेकर धारण करती हुई खडी हुई।
जमालिकुमार के दाहिनी और बायीं ओर ऐसी सुन्दर दो तरुणियाँ हाथ मे चमर लिए हुए लीला सहित डुलाती हुई खडी हो गयीं। वे चमर अनेक मणियो, कनक, रत्नो तथा विशुद्ध एव महामूल्यवान तपनीय (लाल स्वर्ण) से निर्मित उज्ज्वल, विचित्र दण्डवाले एव देदीप्यमान थे और शख, अकरत्न, कुन्दपुष्प (मोगरा), चन्द्र जल बिन्दु एव मथे हुए अमृत के फेन के पुज के समान श्वेत थे।
तब क्षत्रियकुमार जमालि के ईशान कोण मे शृगारधर के समान, रूप-यौवन की लावण्यमयी प्रतिमा एक तरुणी शुद्ध जल से परिपूर्ण, उन्मत्त हस्ती के महामुख के आकार समान श्वेत रजत कलश हाथ मे लेकर खडी हो गयी।
जमालिकुमार के आग्नेय कोण मे शृगार की आगार रूप एक तरुण युवती विचित्र स्वर्णमय दड वाले ताड़पत्र के पखे को लेकर खडी हो गयी।
तब जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषो को बुलाया और कहा- देवानुप्रियो शीघ्र ही समवर्ण वाले, समवय वाले, समलावण्य वाले, रूप और योवन गुणो से सभृत समआभूषणो से विभूषित गात्र वाले, समवस्त्र धारण करने वाले एक हजार श्रेष्ठ कौटुम्विक पुरुषो को बुलाओ।
तब उन्होंने पिता की आज्ञा से एक हजार श्रेष्ठ कौटुम्बिक पुरुषो को बुलाया। उन कौटुम्विक पुरुषो ने एक-सरीखे आभूषण एव वस्त्रों को धारण किया, जमालि के पिता के पास उपस्थित हुए और कहा-हमारे योग्य कार्य का आदेश दीजिए।
जमालिकुमार के पिता ने कहा-तुम सब जमालिकुमार की शिविका उठाओ।
तब उन कौटुम्विक पुरुषो ने शिविका उठाई। उस शिविका के आगे-आगे सर्वप्रथम आठ मंगल-1 स्वस्तिक, 2. श्रीवत्स, 3 नन्दावर्त 4 वर्धमानक, 5 भद्रासन, 6 कलश, 7 मत्स्य और 8 दर्पण चले। इनके पश्चात् पूर्ण कलश, झानियॉ. दिव्य छत्र. पताका. चेंवर एव दर्शनीय गगनचुम्बी विजय ध्वजा लिए राजपुरुष चले।
तत्पश्चात् नीलम की प्रमा से देदीप्यमान उज्ज्वल, दडयुक्त लटकती हुई (क) चार-मुन्दर