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________________ 162 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग- द्वितीय हस के चिह्न से युक्त रेशमी वस्त्र पहिनाया । अठारह लडी वाला हार, नवलडी वाला हार, एकावली, मुक्ताहार और रत्नावली गले मे पहनाई। भुजाओ मे अगद केयूरण, कडा, त्रुटित", करधनी" दसो अगुलियो मे दस अगूठियों, वक्ष सूत्र, मुरवि (मादलिया), कठ मुरवि (कठी), प्रालब (झूमके ), कानो मे कुण्डल तथा मस्तक पर चूडामणि ( कलगी) और विचित्र रत्न जडित मुकुट पहिनाया । ग्रन्थिम (गूँथी हुई), वेष्टिम ( लपेटी हुई), पूरिम (पूरी हुई) और सघातिम (साधकर बनाई हुई) चारो प्रकार की पुष्प मालाओ से कल्पवृक्ष के समान जमालिकुमार को अलकृत किया। तत्पश्चात् जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषो को बुलाया और उनसे कहा- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही सैकडो खम्भो से युक्त एक शिविका तैयार करो जिसमे स्थान-स्थान पर हाव-भाव, विलासयुक्त अनेक पुतलियाँ नयनाभिराम हो । उस शिविका मे ईहामृग (भेडिया), वृषभ (बैल), तुरग (घोडा), नर, मगरमच्छ, विहग (पक्षी), सर्प, किन्नर, रुरु (कस्तूरी मृग), सरभ (अष्टापद पक्षी), चमरी गाय, हाथी, वन लता, पद्मलता आदि के नयनाभिराम चित्र चित्रित हो । उसके स्तम्भो पर वज्र रत्नो की रमणीय वेदिका बनाओ, जहाँ समश्रेणि मे स्थित विद्याधर युगल यत्र चालित जैसे दिखलाई दे । वह शिविका हजारो किरणो से व्याप्त एव हजारो चित्रो से युक्त देदीप्यमान, अतीव देदीप्यमान प्रतीत हो। जिसे देखते ही दर्शको के नेत्र वहीं चिपक जाये। जिसका सस्पर्श सुखद एव श्रीसम्पन्न हो, जिसके हिलने-डुलने से उसमे लगी हुई घटियाँ मधुर एव मनोहर ध्वनि प्रसरित करे । जो वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना होने से कमनीय, दर्शनीय हो । निपुण शिल्पियो से निर्मित, देदीप्यमान मणि-रत्नो से, घुंघरुओ से व्याप्त एक हजार पुरुषो द्वारा उठाई जाने योग्य शिविका (पालकी) उपस्थित करो । कौटुम्बिक पुरुषो ने जमालि के पिता की आज्ञा का पालन कर शिविका तैयार कर दी । तत्पश्चात् जमालिकुमार केशालकार, वस्त्रालकार, माल्यालकार और आभरणालकार, इन चार प्रकार के अलकारो से अलकृत होकर, प्रतिपूर्ण अलकारो से सुसज्जित होकर सिहासन से उठा और दक्षिण की ओर से शिविका पर चढा और श्रेष्ठ सिहासन पर पूर्व की ओर मुँह करके बैठ गया । तब जमालि की माता स्नानादि करके यावत् शरीर को अलकृत करके हस चिह्न वाला पट शाटक लेकर दक्षिण की ओर से शिविका पर चढकर जमालिकुमार की दाहिनी ओर श्रेष्ठ भद्रासन पर बैठ गयी । (क) अंगद - भुजा का गहना, भूजवद (ग) त्रुटित बज्जूवद (ख) केयूर - वाजूवद (घ) करधनी - कदौरा
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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