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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 161 वडे ठाठ-बाट से स्नान करवाया। अल्पभार, बहु-ऋद्धि वाले आभूषण-वस्त्रो से शरीर को अलकृत किया। पुष्प, गध, माला, अलकार से गात्र को विभूषित किया और उसका निष्क्रमणाभिषेक किया। तत्पश्चात् उसको जय-विजय शब्दो से बधाया और माता-पिता ने पूछा-पुत्र तुम बताओ, हम तुम्हारे लिए क्या करे? जमालि-माता-पिता ! कुत्रिकापण से रजोहरण एव पात्र मॅगवाओ तथा नापित को बुलाओ। तब पिता ने भण्डार से तीन लाख स्वर्ण मुद्राएँ निकाली, उनमे से एक-एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ देकर कुत्रिकापण से रजोहरण एव पात्र मॅगवाये तथा एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ देकर नापित को बुलाया। जमालि के द्वारा बुलाये जाने पर नाई उपस्थित हुआ और उसने पिता से पूछा-देवानुप्रिय | आप फरमाइये, मुझे क्या करना है? तब पिता ने कहा-देवानुप्रिय तुम जमालि के निष्क्रमण योग्य चार अगुल वालो को छोडकर अत्यन्त यत्नपूर्वक बालो का कर्तन करो। पिता का आदेश प्राप्त कर नाई अत्यन्त हर्षित हुआ। उसने सुगन्धित गधोदक से हाथ-पैर धोये। आठ पाटवाले शुद्ध वस्त्र से मुंह को बाँधा और अत्यन्त यत्नपूर्वक चार अगुल केशो को छोडकर शेष का कर्तन किया। तव जमालि की माँ ने हस चिह वाली चद्दर मे उन अग्र केशो को ग्रहण किया। फिर उन्हे सुगधित जल से धोया। श्रेष्ठ गध एव माला द्वारा अर्चन किया और शुद्ध वस्त्र मे बाँधकर रत्नो के पिटारे मे रखा। तत्पश्चात् जमालि की माता सुदर्शना हार, जलधारा निर्गुण्डी के श्वेत फूल एव टूटी हुई मोतियो की माला के समान पुत्र के वियोग से ऑसू बहाती हुई इस प्रकार कहने लगी-जमालि के केश बहुत-सी तिथियो, पर्वो, उत्सवो, इन्द्रादि महोत्सवो के अवसर पर अन्तिम दर्शन के रूप मे होगे। फिर वे केश तकिये के नीचे रख दिये। तत्पश्चात् जमालि के माता-पिता ने दूसरी बार उत्तराभिमुख सिहासन रखवाया और जमालि को कनक-रजत कलशो से स्नान करवाया। रोएँदार सुकोमल, गध कापायित सुगधित वस्त्र से उसके गात्र को पोछा । सरस गोशीर्ष चन्दन का लेप उसके अग-प्रत्यगो पर किया। नानिका की निश्वास गयु से उड जावे ऐसे बारीक, नेत्री को आमादक लगने वाला अत्यन्त सुन्दर सुकोमल, घोडे के मुख की लार से भी अधिक कोनल श्वेत एव स्वर्ण तार जडित महामूल्यदान
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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