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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 157 भगवान् के मुख से धर्म श्रवण किया और वह तुझे इष्ट, अभीष्ट और रुचिकर लगा है। जमालि बोला-माता-पिता ! प्रभु द्वारा उपदिष्ट प्रवचन मुझे इष्ट लगा है, इसलिए मैं ससार के भय से उद्विग्न बना, जरा-मरण से भयभीत होकर सयम ग्रहण करना चाहता हूँ, आप मुझे सयम ग्रहण करने की अनुज्ञा प्रदान कीजिए । मालि की यह बात श्रवण कर माता के शरीर से पसीना छूटने लगा । वह शोक सतप्त हो कॉपने लगी। उसका मुख कमल मुरझा गया। वह लावण्यशून्य एव कान्तिविहीन हो गयी। उसके आभूषण नीचे गिरने लगे। उसका उत्तरीय वस्त्र (ओढना ) ऊपर से हट गया। शरीर भारी-भारी हो गया । चेतना नष्ट हो गयी ओर धडाम से वह धरतीतल पर गिर पडी । तब दासियो ने स्वर्ण कलशो की जलधारा से सिचन कर उसके गात्र को स्वस्थ किया। बॉस के पखो से हवा की । तब उसकी मूर्च्छा अपगत हुई । मूर्च्छा दूर होते ही वह करुण विलाप करने लगी- बेटा ! तू हमारा इकलौता पुत्र है। तू हमे इष्ट, कान्त, प्रिय और मनोज्ञ है। हम तुम्हारे बिना एक क्षण भी नहीं रह सकते। इसलिए जब हम परलोकवासी हो जाये, तेरी उम्र परिपक्व हो जाये और तेरे वंश की वृद्धि हो जाये तब तू मुण्डित होकर प्रव्रजित हो जाना । मालि - माता-पिता ! यह मनुष्य जीवन जन्म, जरा, मृत्यु, रोग तथा शारीरिक, मानसिक वेदनाओ से सैकडो व्यसनो एव उपद्रवो से ग्रस्त है । यह कुश के अग्रभाग पर रही ओस बिन्दु के समान क्षणिक एव चचल हे । यह अवश्यमेव छोडने योग्य है । हे माता-पिता । यह कोन जानता है कि हममें से कौन पहले जायेगा? कौन पीछे जायेगा? इसलिए आप मुझे सयम ग्रहण करने की अनुज्ञा प्रदान कीजिए । माता-पिता-बेटा । अभी तेरा शरीर यौवन के चरमोत्कर्ष को प्राप्त सबल, सामर्थ्यवान एव निरोग है, इसलिए अभी तो तू भोतिक ऋद्धि का उपभोग करले । फिर जब हम कालधर्म को प्राप्त हो जायेगे तव तू उम्र के परिपक्व होने पर कुल की वृद्धि होने पर सयम ग्रहण करना । जमालि- माता-पिता ! यह शरीर दुखो का आगार ह, सकडो व्याधिया का खजाना है। अस्थि रूप काष्ठ पर खड़ा नाडियो ओर स्नायुओं के जाल से परिवेष्टित है। मिट्टी के वर्तन की तरह नाजुक ओर गदगी से दूषित है। इसका टिकाये रखने के लिए इसकी निरन्तर सम्हाल रखनी पडती है। यह सडन, गलन आर विध्वसन गुणवाला हे इसलिए आप मुझे सयम ग्रहण करने की अनुशा दीजिए ।
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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