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156: अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय श्रवण करने हेतु निकला | उस समय वहाँ स्थित क्षत्रियकुमार जमालि जो भगवान् महावीर की बड़ी बहिन सुदर्शना का लडका होने से भानजा था, और भगवान् की पुत्री प्रियदर्शना का पति होने से जामाता था। अपने भव्य प्रासाद मे बत्तीस प्रकार के नाटको को देखता हुआ, मृदग, वाद्य" आदि की ध्वनियो को श्रवण करता हुआ भोगानन्द मे निमज्जित था।
बाहर से आने वाले कोलाहल ने जमालि के मन मे हलचल पैदा कर दी। उसने महल के झरोखे से झाँककर देखा तो लोगो का समूह एक ही दिशा की तरफ मुंह करके जा रहा था। जमालि ने सोचा कि आज नगर मे कौनसा महोत्सव है? ये लोग कहाँ जा रहे हैं? उसे महोत्सव का स्मरण नहीं आया। तब उसने कचुकी पुरुष को बुलाया और उससे पूछा-आज नगर मे कौनसा महोत्सव है? ये लोग एकत्रित होकर कहाँ जा रहे हैं?
कचुकी-कुमार । आज कोई उत्सव नहीं। ब्राह्मणकुण्ड मे भगवान् महावीर पधारे हुए हैं, उनकी धर्मदेशना श्रवण करने हेतु ये सभी जा रहे है।
कचुकी से जमालि यह श्रवण कर अत्यन्त हर्षित एव सतुष्ट हुआ। वह कौटुम्बिक पुरुषो को बुलाकर कहता है-तुम चार घटा वाला अश्व-रथ लाओ। कौटुम्बिक पुरुष चतुर्घण्टा वाला अश्व-रथ लाते हैं, जिस पर समारूढ होकर वह ब्राह्मणकुण्ड नगर की ओर रवाना होता है। ब्राह्मणकुण्ड के बहुशाल वन उद्यान के समीप पहुँचकर उसने उद्यान के बाहर अपने रथ को रोका। वहीं पर पुष्प, ताम्बूल, आयुध (शस्त्र) एव जूते उतारे। आचमन किया तथा एक शाटिक उत्तरासन लगाकर श्रमण भगवान् महावीर के समीप पहुंचा। प्रभु को दृष्टि वदन कर वह आगे बढा, तत्पश्चात् तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिण करके पर्युपासना करने लगा।
प्रभु ने उस परिषद को सुधासभृत वाणी का पान कराया। जिनवाणी श्रवण कर परिषद पुन लौट गयी। जमालि निर्ग्रन्थ प्रवचन श्रवण कर प्रभु से निवेदन करने लगा-हे भते । आपका प्रवचन मुझे अत्यन्त सारभूत लगा। मैं माता-पिता की आज्ञा लेकर श्रीचरणो मे मुण्डित होकर प्रव्रजित होना चाहता हूँ।
प्रभु ने फरमाया-हे देवानुप्रिय | तुम्हे जैसा सुख हो वैसा करो, लेकिन धर्मकार्य मे विलम्ब न करो।
प्रभु के ऐसा कहे जाने पर वह जमालि रथारूढ होकर अपने प्रासाद की ओर क्षत्रियकुण्ड के लिए रवाना हआ और महलो मे जाकर अपने माता-पिता से निवेदन किया-हे माता-पिता | मैंने भगवान महावीर से आज धर्म श्रवण किया, वह मुझे अत्यन्त इष्ट एव रुचिकर प्रतीत हुआ है।
माता-पिता ने कहा-हे पुत्र । तू धन्य है, कृतार्थ है, भाग्यशाली है कि तूने