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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 155 गणधर गौतम इस दृश्य का अन्तरावलोकन कर रहे थे। वे प्रत्यक्ष द्रष्टा बने हुए विस्मयान्वित हो रहे थे, चितन कर रहे थे कि यह क्या? यह देवानन्दा भगवान को निर्निमेष निहारे जा रही है और भगवान् को निहारने से इसके शरीर मे अद्वितीय परिवर्तन दिखाई दे रहा है। इसके पयोधरो से पयस बह रहा है। यह दृश्य तो मैं प्रथम बार ही देख रहा हूँ। लगता है, प्रभु का देवानन्दा से कोई सासारिक सम्बन्ध रहा होगा। मै भगवान् से पूछता हूँ। इस प्रकार विचार कर इन्द्रभूति गौतम बोले-भगवन् ! देवानन्दा ब्राह्मणी के पयोधरो से दुग्ध क्यो बह रहा है? यावत् इसका शरीर रोमाचित क्यो हो रहा है? यह आपको अपलक दृष्टि से क्यो निहार रही है?
भगवान् ने फरमाया-गौतम ! देवानन्दा मेरी माता है। प्रथम गर्भाधान काल मे मैं उसके गर्भ मे रहा। मैं उनका पुत्र हूँ। पुत्र के अनुरागवश ही उसके पयोधरो से यह दुग्ध की धारा बह रही है और वात्सल्य के कारण उसका शरीर रोमाचित हो रहा है। यही कारण है कि वह टकटकी लगाकर निरन्तर मुझे देख रही है।"
गौतम गणधर समाधान प्राप्त कर अत्यन्त हर्षित, सतुष्टित हुए। वे वदन कर प्रभु के समीप बैठ गये। तब भगवान् ने धर्मोपदेश फरमाया, जिसे श्रवण कर ऋषभदत्त एव देवानन्दा के मन मे वैराग्य का जागरण हुआ और उन्होने प्रभु से कहा-आपकी अमृत वाणी श्रवण कर हम आपश्रीजी के चरणो मे प्रव्रज्या अगीकार करना चाहते हैं।
भगवान् ने फरमाया-जेसा सुख हो वैसा करो, किन्तु धर्मकार्य मे विलम्ब न करो।
तब दोनो ने ईशान कोण मे जाकर वस्त्रालकार उतारे ओर पचमुष्टि लोच करके प्रभु के चरणो में सयम अगीकार किया। देवानन्दा ने आर्या चन्दनाजी की शरण को स्वीकार किया। तत्पश्चात् दोनो सयमी यात्रा का निर्वहन करते हुए ग्यारह अगशास्त्रो का अध्ययन करने लगे।
ऋषभदत्त एव देवानन्दा सयम जीवन का आनन्द ले रहे थे और प्रभु ब्राह्मणकुण्ड की जनता को अपनी भव्य देशना से सराबोर कर रहे थे। ब्राहाणकुण्ड के समीप बसे हए क्षत्रियकण्ड' ने भी भगवान के ब्राह्मणकण्ड विराजने के समाचार निरन्तर पहुँच रहे थे। क्षत्रियकुण्ड से भी अनेक दर्शनार्थी प्रभु के चरणों की उपासना का निरन्तर लाम ले रहे थे। जमालि ने ली प्रभु की शरण :
एक दिन दर्शनार्थियों का समूह क्षत्रियकुण्ड से भगवान महावीर की देशना