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________________ 154 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय कहा-आज हमारा महान पुण्योदय है कि आज तीर्थपति भगवान् महावीर हमारे यहाँ पधारे हैं। ऐसे महान पुरुषो का तो नाम-गोत्र श्रवण करना भी दुर्लभ है, फिर उनके दर्शन, वदन एव वाणी-श्रवण से होने वाले लाभ के विषय मे कहना ही क्या ! देवानन्दा ने भगवान् के आगमन के समाचारो को जैसे ही ऋषभदत्त से सुना, उसका रोम-रोम पुलकित हो गया। उसने कहा-अपन भी प्रभु के दर्शन हेतु चलते हैं। दोनो ने धार्मिक स्थान मे जाने योग्य वस्त्राभूषणो को धारण किया एव रथ मे बैठकर प्रभु के समवसरण की ओर प्रस्थान कर दिया।" घोडो की टाप के साथ मन मे उत्साह भरने लगा। उनके नयन समवसरण का बेसब्री से इतजार कर रहे थे। शनै -शनै वे समवसरण के पास पहुंचे। समवसरण के पास पहुंचकर उन्होने धार्मिक रथ को रोका। रथ से नीचे उतरकर ऋषभदत्त ब्राह्मण ने पॉच अभिगम धारण किये, यथा1 सचित्त द्रव्यो का त्याग किया (पुष्पमालादि उतार कर रथ मे रखे)। 2. अचित्त द्रव्यो का विवेक किया (जूते-चप्पल आदि उतारे)। 3 मुँह पर एक शाटिक-दुपट्टा लगाया।fit 4 समवसरण मे पहुंच कर प्रभु को दृष्टि-वदन किया। 5 अपने स्थान पर पहुंच प्रभु को विधियुक्त वदन किया और बैठ गया। तत्पश्चात् देवानन्दा ब्राह्मणी भी धार्मिक रथ से नीचे उतरी, उतरकर उसने पॉच अभिगम धारण किये - 1 सचित्त का त्याग किया (पुष्पमालादि)। 2 अचित्त वस्त्रादि का विवेक किया (जूते-चप्पल आदि उतारे)। 3 शरीर को विनय से झुकाया। 4 समवसरण मे प्रभु के दीदार को देखकर दृष्टि-वदन किया। 5 समवसरण मे अपने स्थान पर पहुंचकर विधियुक्त वदन किया और अपने स्थान को ग्रहण कर लिया। देवानन्दा ने शारीरिक दृष्टि से स्थान ग्रहण कर लिया, लेकिन उसका मन तो प्रभु के मुखचन्द्र को देखने मे समाकृष्ट था। वह भगवान् को देखते ही चित्रलिखित-सी रह गयी। प्रभु के दीदार को देखकर उसके हृदय मे वात्सल्य की धारा प्रवाहित होने लगी। उन्नत पयोधरो के विस्तीर्ण होने से कचुकी ने विस्तीर्णता धारण की और उसके उरोजो से दूध की धारा बहने लगी, लेकिन अब भी वह निरन्तर प्रभु को निर्निमेष दृष्टि से निहारे जा रही थी।
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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