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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 153 अनुत्तरज्ञानचर्या का द्वितीय वर्ष
। उद्घाटित हुआ रहस्य एक अद्भुतमिलन :
गडकी नदी के कूल पर बसा ब्राह्मणकुण्ड नगर महीतल पर अपनी आभा विकीर्ण कर रहा था। अनेक बहुमजिली गगनचुम्बी हवेलियॉ वहाँ के कलाकौशल को प्रदर्शित कर रही थीं। स्थान-स्थान पर बने उद्यान अपनी सौम्य छटा से पथिको के आकर्षण का केन्द्र बने थे।
उसके ईशानकोण मे निर्मित बहुशाल उद्यान विविध तरुवृन्दो एव तरु-लताओ से अलकृत आगन्तुको का मन मुग्ध बना रहा था। पादपो के अवलम्बन पर पलने वाला खग समूह अपने कलरव नाद से वातावरण की कलुषता का अपहरण कर रहा था।
वहाँ के भद्रिक परिणामी लोग स्वभाव से सरल प्रकृति के थे। वे विशाल ज्ञान का भण्डार अपने मे समर्जित किये निरन्तर ज्ञान सरिता मे अवगाहन कर रहे थे। वहाँ रहने वाला ऋषभदत्त ब्राह्मण' अत्यन्त मेधा सम्पन्न था। वह ऋद्धि-समृद्धि की परिपूर्णता के साथ ज्ञान-समृद्धि मे भी वेभव की मिसाल था। ___ वैदिक साहित्य की दृष्टि से उसने चार वेदो का ज्ञान उपार्जित किया, तत्पश्चात् भगवान् पार्श्वनाथ के सामीप्य से उसने श्रावक योग्य वारह व्रतो को ग्रहण किया था। वह जीव-अजीवादि नव तत्त्वो का ज्ञाता था और उनका पारायण करता हुआ अपनी जीवनचर्या को गतिमान कर रहा था।
उसकी अर्धागिनी देवानन्दा ब्राह्मणी अपने भर्ता का अनुगमन करने वाली था। सरलमना देवानन्दा का बाह्य सौन्दर्य नेत्राकर्षक था। कमनीय हाथ-पर वाली, मधुर भाषिणी देवानन्दा का सान्निध्य ऋषभदत्त के हृदय को आनन्दित करने वाला था। धर्म-मार्ग मे भी उद्यम करने वाली देवानन्दा ने बारह व्रतो को धारण कर, जीवाजीव आदि की ज्ञाता बनकर ज्ञान प्राप्ति के प्रति गहन अभिरुचि जागृत करली थी और समय-समय पर ज्ञान प्राप्ति का उपक्रम करती रहती था। उनकी धार्मिक जिज्ञासा को ध्यान मे रखकर भगवान महावीर अनेका भव्यात्माओ का उद्धार करने के लिए इसी ब्राह्मणकण्ड मे पधारे ओर वहागाल वन उद्यान मे ठहर कर तप-सयम से अपनी आत्मा को भावित करने लगे। ब्राह्मणकुण्ड मे गली-गली, चौराहे-चौराहे पर भगवान महावीर के आगमन की चर्चा होने लगी। अदम्य उत्साह से लोगो के समूह के समूह भगवान महावीर के दर्शनार्थ जाने लगे। ऋषभदत्त को भी यह सूचना कर्णगोचर हई कि भगवान पधार गये है। वह भी अत्यन्त हर्पित होकर घर आया और उसने देवानन्दा से