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________________ चित्र-विचित्र यमक पर्वा में तथा काचन पर्वत में निवास करते है। स्थिति - एक पल्योपम की देवकुरू मे शीतोदा नदी के दोनो तटो पर चित्रकूट पर्वत है। उत्तरकुरू मे शीतानदी के दोनो तटो पर यमक-समक पर्वत है। उत्तरकुरू मे शीतानदी से सम्बन्धित नीलवान् आदि 5 द्रह हैं। उनके पूर्व-पश्चिम दोनो तटो पर 10-10 काचन पर्वत है। इस प्रकार उत्तरकुरू मे 100 काचन पर्वत है। देवकुरू मे शीतोदा नदी से सम्बन्धित निषध आदि 5 द्रहो के दोनो तटो पर 10-10 काचन पर्वत है। इस तरह ये भी 100 काचन पर्वत हए दोनो मिलाकर 200 काचन पर्वत हैं। इन पर्वतो पर ज़म्भक देव रहते है (भग सूत्र 14 शतक 8 उद्देश्क) इन जृम्भक देवो का पल्योपम का आयुष्य होता है। ये नित्य प्रमुदित रहते हैं, क्रीडा करते हैं, सूरत समागम मे लीन रहते हैं। इनका स्वच्छन्दाचार नित्य (वि) जृम्भ प्राप्त करता (बढता-बढता) होने से ये जृम्भक कहलाते हैं। (गाथा 53-54, द्रव्यलोक) लोक प्रकाश, प्रथम विभाग-द्रव्यलोक, पृ 477 LXVII विद्याधर विद्या के बल से आकाश मे उड़ने वाला मनुष्य, वैताढय पर्वत की विद्याधर श्रेणी में रहने वाला मनुष्य विद्याधर कहलाता है। जमीन से दस योजन ऊँचे दक्षिण और उत्तर दिशा मे वैताढय पर्वत के दोनो तरफ की श्रेणियाँ जिनमे विद्याधर रहते हैं। जम्बू प्रथमवक्षस्कार LXVIII निदान निदान की घटना प्रथम वर्ष की है ऐसा उल्लेख जैन कथा माला भाग 7 एव 8 मे मिलता है। मधुकरमुनिजी म सा , पृ.72 LXIX निदान निदान को आयतिस्थान भी कहा है। आयति-लाम, किसका-जन्म मरण का। जिससे जन्म - मरण की प्रक्रिया वृद्धिगत हो उसे निदान कहते हैं। Lxx आठ मंगल का टिप्पण (मेघकुमार) स्वस्तिक - साथिया श्रीवत्स - तीर्थकर के वक्षस्थल में उठे हुए अवयव के आकार का चिन्ह विशेष श्रीवत्स कहलाता है। - . ram A
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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