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150 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय
नंदिकावर्त
वर्धमानक
भद्रासन
कलश
मत्स्य
दर्पण
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1
प्रत्येक दिशा मे नव कोण वाला साथिया विशेष । शराब (सकोरे ) को वर्द्धमानक कहते है । सिहासन विशेष |
ये लोक प्रसिद्ध हैं।
औपपातिक सूत्र 4 टीका, राजप्रश्नीय सूत्र 14
LXXI संयममार्ग
साधु
के अठारह कल्प बतलाये हैं, छ व्रत, छ काया के आरम्भ का त्याग, अकल्पनीय वस्तु, गृहस्थ के पात्र, पर्यक निषद्या, स्नान और शरीर की शुश्रूषा इनका त्याग करना ।
दीक्षा अयोग्य अठारह प्रकार के पुरुष :- 1 बाल, 2 वृद्ध, 3 नपुसक, 4 क्लीब, 5 जड (भाष जड, शरीर जड, करण जड), 6 व्याधित, 7 स्तेन, 8 राजापकारी, 9 उन्मत्त, 10 अदर्शन, 11 दास, 12 दुष्ट, 13 मूढ, 14 ऋणार्त, 15 जुगिक, 16 अवबद्ध, 17 मृतक, 18 शैक्ष- निस्फैटिक । LXXII दुर्गन्ध
आठ वर्ष पश्चात् राजगृह मे कौमुदी महोत्सव आया। उसमे अनेक युवक-युवतियाँ वस्त्रालकार आदि धारण कर आये थे। राजा श्रेणिक भी इस महोत्सव मे अभय कुमार के साथ वर योग्य परिधान पहिन कर गया । अत्यन्त भीड होने से राजा का हाथ उस युवती पर पड गया। जैसे ही हाथ का सस्पर्श हुआ श्रेणिक का अनुराग भाव जागृत बन गया । तब श्रेणिक ने अपनी मुद्रिका उस बाला के पल्ले के छोर से बाँध दी और श्रेणिक राजा ने अभय कुमार से कहा कि मेरा चित्त अत्यन्त व्याकुल था और उस समय मेरी मुद्रिका कोई हरण करके ले गया है अतएव तू चोर का पता लगा कर आ । तब अभय कुमार ने सारे द्वार बन्द करवा दिये और एक-एक मनुष्य को मुख, वस्त्र, केशादि बुद्धिमानी से देख-देख कर उसे दरवाजे से बाहर निकालने लगा। ऐसे करते-करते वह आभीरी कुमारी दुर्गन्धा आई उसके वस्त्र देखते हुए पल्ले पर बधी वह अंगूठी नजर आई। तब अभय कुमार ने पूछा - बाला ये अँगूठी तुमने क्यो ली? आभीरी बाला घबरा कर बोली- मैं कुछ भी नहीं जानती तब उसका सौम्य रूप देखकर अभय कुमार ने अपनी विलक्षण प्रज्ञा से चिन्तन किया कि इस बाला पर मेरे पिता मुग्ध बन गए है इसलिए मेरे पिता ने यह मुद्रिका स्वय इसके पल्ले पर