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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 147 वृक्ष, सुन्दरकाण्ड की तिलक टीका मे चौराहे का वृक्ष, कल्पसूत्र मे जीर्ण-उद्यान, प्रश्नव्याकरण मे ज्ञान उववाई, अनुत्तरोप-पातिक, उपासकदशाग आदि शास्त्रो मे वृक्ष और उद्यान किया है।
चैत्य शब्द की मीमासा श्री घासीलालजी महाराज, प्रस सवत्-1987 LXIII गुणशील
यह राजगृह का प्रसिद्ध उद्यान है। भगवान् महावीर के ग्यारह गणधर शिष्यो ने इसी गुणशील चैत्य मे अनशनपूर्वक निर्वाण प्राप्त किया था। आजकल का गुणावा, जो नवादा स्टेशन से लगभग तीन मील पर है, प्राचीन काल का गुणशील माना जाता है। LXIV इन्द्र महोत्सव
इन्द्रमहोत्सव का उल्लेख उत्तराध्ययन सूत्र की टीका मे मिलता है। एक बार इन्द्रमहोत्सव आने पर द्विमुख राजा ने नगरजनो को इन्द्रध्वज स्थापित करने को कहा। तब नागरिको ने एक सौम्य स्तम्भ पर मनोहारी वस्त्र लपेटा। उसके ऊपर सुन्दर वस्त्र का ध्वज बाँधा उसको चारो ओर से छोटी-छोटी ध्वजाओ और घटियो से श्रृगारित किया और उसको ऐसे फूलो से सजाया जिन पर भ्रमर दौड़े चले आते हो उन फलो पर रत्नो और मोतियो को सुसज्जित किया। उन ध्वजा को गाजे-बाजे के साथ नगर के मध्य मे स्थापित किया। तत्पश्चात् लोगो ने फल-फूल आदि से पूजा की। कितने ही लोग वहाँ गाने लगे, नृत्य करने लगे, बाजे बजाने लगे, याचको को दान देने लगे। कर्पूर-केसर मिश्रित रग छिटकने लगे, सुगन्धित चूर्ण उडाने लगे। इस प्रकार सात दिन तक उत्सव चलता रहा। सातवे दिन पूर्णिमा आई तो द्विमुख राजा ने भी उस ध्वज की पूजा की।
उत्तराध्ययन, भावविजयजी, पत्राक - 210 LXV स्कन्द महोत्सव 1 भूतों की गणना - वाणव्यन्तर में की गई है। वृहत्कल्प सूत्र भाग
5 मे हेमपुर नामक नगर मे इन्द्रपूजा का उल्लेख मिलता है कि 500 उच्च कुल की महिलाओ ने फूल, धूपदान आदि से युक्त होकर सौभाग्य के लिए इन्द्र की पूजा की। स्कन्दमह - स्कन्द शिव के लडके थे। उसके सम्बन्ध मे यह पर्व भगवान महावीर के काल में मनाया जाता था, जब वे श्रावस्ती पहुँचे
तय स्कन्द का जुलूस निकाला जा रहा था। 3 रूद्रमह .- रूद्रधर की चर्चा जेन ग्रन्थो मे मिलती है। रूद्र को
महादेवता कहा है। मुकुन्दमह - जैन ग्रन्थों में मुकुन्द पूजा का भी उल्लेख है। भगवान्