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146 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय
XLIX
कौशाम्बी
अपने असाधारण, गुणो से पुरातन नगरो से भिन्नता स्थापित करने वाली प्रमुख या श्रेष्ठ नगरी कौशाम्बी थी ।
LX चिकित्सा
चार प्रकार की चिकित्सा का उल्लेख मिलता है :
1 यथा भिषक् (वैद्य), भेषज (औषधि), रूग्ण और परिचारक रूप चार
चरणो वाली ।
2
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4
अथवा
वमन, विरेचन, मर्दन एव स्वेदन रूप चतुर्भागात्मिका ।
अथवा
अजन, बन्धन, लेपन और मर्दन रूप चिकित्सा
स्थानाग सूत्र (चतुर्थ स्थान ) मे वैद्यादि चारो चिकित्सा के अग कहे
गये है ।
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LXI स्वच्छन्द
जिनमत मे पाँच साधु अवन्दनीय (स्वच्छन्द ) हैं - जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र मे पुरुषार्थ नहीं करता । इसके दो भेद हैं यथा
1.
पासत्थ
(अ) सर्वपासत्थ
उत्तराध्ययनसूत्र, 20
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वृहद वृत्ति पत्राक 475 उत्तराध्ययन, नेमीचन्दजी, दिव्यदर्शन ट्रस्ट, पृष्ठ- 180
की आराधना नहीं करता ।
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2. अवसन्न
(ब) देशपासत्थ जो बिना कारण शय्यातर पिण्ड, राजपिण्ड, नित्यपिण्ड, अग्रपिण्ड और सामने लाया हुआ भोजन लेता है। साधु समाचारी मे प्रमाद करने वाला अवसन्न है । 3. कुशील - ज्ञान, दर्शन, चारित्र मे दोष लगाने वाला कुशील है । संसक्त मूल, उत्तर गुणो मे दोष लगाने वाला ससक्त है । 5. यथाछन्द सूत्र विरूद्ध प्ररूपणा करने वाला यथाछन्द हे | श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, भाग 1 सूत्र 347
4.
जो मात्र वेश से साधु है, ज्ञान, दर्शन, चारित्र
IXII चैत्य
चैत्य शब्द का अर्थ भागवत में आत्मा, अमरकोश मे यज्ञशाला, भरत के नाट्यशास्त्र में यज्ञगृह, देवगृह, देवकुल, बुद्ध, विम्ब, वृक्षादि, मेदिन कोशकार ने