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- सग्राम
144 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय
48 व्यूह ___ - चक्रव्यूह आदि रचना। 49 प्रतिव्यूह - व्यूह को भग करने की कला । 50 चक्रव्यूह - चक्राकार व्यूह बनाना। 51 गरूडव्यूह - गरूडाकार व्यूह बनाना। 52 शकट व्यूह ~ शकटाकार व्यूह बनाना। 53 युद्ध 54 नियुद्ध ~ मल्लयुद्ध 55 युद्धातियुद्ध - घमासान युद्ध का ज्ञान। 56 दृष्टियुद्ध - दृष्टियुद्ध का ज्ञान। 57 मुष्टियुद्ध
- मुष्टियुद्ध का ज्ञान। 58 बाहुयुद्ध -- बाहुयुद्ध का ज्ञान। 59 लता युद्ध - जैसे लता वृक्ष पर चढती है, वैसे एक योद्धा का
दूसरे योद्धा पर चढ जाना। 60 इषुशास्त्र - नाग बाण आदि का ज्ञान 61 त्सरू प्रवाद - खडग शिक्षा 62 धनुर्वेद - धनुर्विधा 63 हिरण्यपाक - रजत सिद्धि 64 स्वर्ण - स्वर्णसिद्धि 65 सूत्र खेल - सूत्र क्रीडा 66 वस्त्र खेल - वस्त्र क्रीडा 67 मालिका खेल - द्यूत विशेष 68 पत्र-छेद्य - पत्र छेदन। 69 कट-छेद्य - पर्वतभूमि छेदन की कला। 70 सजीव करण - मृत धातु को स्वाभाविक रूप मे पहुँचाना। 71 निर्जीवकरण - स्वर्ण आदि धातुओ को मारना। 72. शकुनिरूत - पक्षियो की आवाज जानना।
यहॉ कलाओ का निरूपण जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार किया है ज्ञातासूत्र मे कलाएँ समान-सी है लेकिन सख्या क्रम मे अन्तर है। समवायाग की कलाओं मे बहुत अन्तर है। औपपातिक मे पांचवी कला गीत, पच्चीसवीं कला गीति और छप्पनवी कला दृष्टि युद्ध नहीं है। इनके स्थान पर औपपातिक मे चक्कलक्खण, चम्मलक्खण, वत्थुनिवेसन का उल्लेख है। ये सब सकलन भिन्नता से अवगतव्य