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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 141 जैन कथाएँ, भाग 37 XXXIX कामार्त का भान भूलना धूमज्योति सलिल मरूता-सन्निपात क्व मेघ सदेशार्था क्व पटुकरणौ प्राणिभिद प्रापणीया इत्यौत्सुक्यादपरिगणयन् गुह्णकस्त ययाचे कामार्ता हि प्रकृति श्चेतनाचेतनेषु, मेघदूत, महाकवि कालिदास XL मगध मगध - यह देश महावीर के समय का एक प्रसिद्ध देश था। मगध की राजधानी राजगृह महावीर के प्रचार क्षेत्रो मे प्रथम और वर्षावास का मुख्य केन्द्र था। पटना और गया जिले पूरे और हजारीबाग का कुछ भाग प्राचीन मगध के अन्तर्गत थे। इस प्रदेश को आज कल दक्षिणी-पश्चिमी बिहार कह सकते हैं। इस देश के लाखो मनुष्य महावीर के उपदेश को शिरोधार्य करते थे। मागधी भाषा की उत्पत्ति इसी मगध से समझनी चाहिये। xu धूलि द्रष्टव्य - मुक्तेषु रश्मिषु निरायतपूर्वकाया, निष्कम्प चामरशिखा निभृतोर्ध्वकर्णा आत्मोद्धतैरपि रजोभिरलधनीया, धावन्त्यमी मृगजवाक्षयमेवरथ्या अभिज्ञान-शाकुन्तलम् प्रथम अक, महाकवि-कालिदास XLI औष्ट्रिक औष्ट्रिक तप क्या होता है? इसका उल्लेख तो खोज का विषय है लेकिन अर्धमागधी कोश मे औष्ट्रिक श्रमण शब्द जरूर मिलता है जिसका विश्लेषण करते हुए बतलाया है कि मिट्टी के बडे चरतन मे बैठकर तपश्चर्या करने वाला। XLIL मानोन्मान प्रमाण जल से भरी द्रोणी (नाव) मे बैठने पर उससे बाहर निकला जल द्रोण (विशेष माप) प्रमाण हो तो वह पुरूष मान-प्राप्त कहलाता है। तुला पर बैठे पुरूप का वजन यदि अर्ध भार प्रमाण हो तो वह उन्मान प्राप्त कहलाता है। शरीर की ऊँचाई उसके अगुल से 108 अगुल हो तो वह प्रमाण प्राप्त कहलाता है। समवायाग, पत्राक 157
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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