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________________ 138 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय 15 श्री सर्वसहेलजी 15 श्री उपशातजी 15 श्री महासेनजी 16 श्री परभजनजी 16 श्री गुप्तिसेनजी 16 श्री सर्वानदजी 17 श्री सौभाग्यजी 17 श्री अतिपार्श्वजी 17 श्री देवपुत्रजी 18 श्री दिवाकरजी 18 श्री सुपार्श्वजी ___18 श्री सुपार्श्वजी 19 श्री व्रतबिन्दुजी 19 श्री मरूदेवजी 19 श्री सुव्रतजी 20 श्री सिद्धकान्तजी 20 श्री श्रीधरजी 20 श्री सुकौशलजी 21 श्री ज्ञानश्रीजी 21 श्री श्यामकोष्ठजी 21 श्री अनतविजय 22 श्री कल्पद्रुमजी 22 श्री अग्रिसेनजी 22 श्री विमलजी । 23 श्री तीर्थफलजी 23 श्री अग्निपुत्रजी 23 श्री महाबलजी 24 श्री ब्रह्मप्रभुजी 24 श्री वारिसेनजी 24 श्री देवानदजी दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थो मे आगामी चौबीसी के नाम इस प्रकार है - 1 श्री महाप्रभ 2 श्री सुरदेव 3 श्री सुपार्श्व 4 श्री स्वयप्रभु 5 श्री सर्वात्मभु 6 श्री श्रीदेव 7 श्री कुलपुत्र देव 8 श्री उदकदेव 9 श्री प्रोष्टिलदेव 10 श्री जयकीर्ति 11 श्री मुनिसुव्रत 12 श्री अरह 13 श्री निष्पाप 14 श्री निष्कषाय 15 श्री विपुल 16 श्री निर्मल 17 श्री चित्रगुप्त ___18 श्री समाधिमुक्त 19 श्री स्वयमू 20 श्री अनिवृत्त 21 श्री जयनाथ 22 श्री श्री विमल 23 श्री देवपाल 24 श्री अनन्तवीर्य समयायागसूत्र, भूमिका-मधुकरमुनिर्ज xxx तीर्थकर तीर्थकर नामकर्म का निकाचित बन्ध तीर्थकर भव से पूर्व, तीसरे भव में होता है। बन्ध और तीर्थकर नामकर्म की जघन्य स्थिति, उत्कृष्ट स्थिति में अन्त कोटा कोटि सागरोपम प्रमाण है, वह अनिकाचित बन्ध की अपेक्षा जानन चाहिये। निकाचित बन्ध तीसरे भव से लेकर तीर्थकर भव के अपूर्वकरण के सख्यात भाग तक बन्धता रहता है, तत्पश्चात् व्यवछिन्न होता है। प्रवचनसारोद्धार, पूर्वभाग, नेमिचन्दजी, पत्राक-84 XXXI बीस बोल इन बीस बोलो की आराधना प्रथम और अन्तिम तीर्थकरो ने की थी। मध्यम
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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