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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 133 समाधान - रत्नादि का ग्रहण सारभूत पुदगलो को ग्रहण करने मात्र की अपेक्षा प्रतिपादित किया है किन्तु रत्नादि का ग्रहण नही है अथवा औदारिक भी ग्रहण किये जाते हुए वैक्रिय रूप मे परिणत होते हैं पुद्गलो की उस-उस सामग्री से वैसा-वैसा परिगमन होने का स्वभाव होने से कोई दोष नही है।
रायपसेणिय टीका पृ 58, वही, बेचरदास XVII वैमानिक
वैमानिक की परिभाषा - विशिष्टपुण्यैर्जन्तुभिर्मान्यन्ते - उपमुज्यते इति विमानानि तेषु भवा वैमानिका सग्रहणी विशिष्ट पुण्यशाली जीवो के जो भोगने योग्य है वे विमान कहलाते है, उनमे उत्पन्न हुए वैमानिक कहलाते है।
पुष्पावकीर्ण विमान–स्वस्तिक, नन्द्यावर्त, श्रीवत्स, खड्ग, कमल, चक्रादि विविध आकार वाले प्रत्येक प्रतर मे होते हैं, वृहत सग्रहणी,वैमानिक-निकाय,गाथा 96, पृ275 XIX सेवन करना चाहिए
मुनि नथमलजी ने अहिसा तत्व दर्शन मे कहा है कि दया मे हिसा या हिंसा मे दया कभी नहीं हो सकती। यदि हम इनको पृथक करना चाहे तो निवृत्त्यात्मक अहिसा को अहिसा एव सप्रवृत्यात्मक अहिसा को दया कह सकते है।
प्रश्न व्याकरण सूत्र मे अहिसा के 60 पर्यायवाची नाम बतलाये है। उनमे ___ 11वॉ नाम दया है।
टीकाकार - मलयगिरि ने उसका अर्थ "दया देहि रक्षा देहधारी जीवो, की रक्षा करना किया है। यह उचित भी है क्योकि अहिसा मे जीव रक्षा अपने आप होती है।
विशेष विवरण के लिये देखिये अहिसा तत्त्वदर्शन, मुनि नथमल, सम्पा छगनलाल शास्त्री,
प्रकाशक-सादर्श साहित्य सघ, चुरू, प्र स सन् 1960, पृ.26-27 ___XX गोबर
गोब्बर गाँव .- यह प्रथम तीन गणधरो की जन्मभूमि है। गोबर राजगृह से पृष्ट चम्पा जाते मार्ग मे पडता था। पृष्ठ चम्पा के निकट होने से यह अगभूमि मे होगा, ऐसा सिद्ध होता है। XII श्रमण
श्रमण - जो श्रम करते हैं वे श्रमण । जो समता का आचरण करते हैं ये