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132 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय XIV मध्यम पावा
पावा (1) - पावा नाम की तीन नगरियाँ थी। जैन सूत्रो के अनुसार एक पावा भगिदेश की राजधानी थी। यह देश पारसनाथ पहाड के आस-पास के भूमि-भाग मे फैला हुआ था, जिसमे हजारी बाग और मानभूम जिलो के भाग शामिल है। बौद्ध साहित्य के पर्यालोचक कुछ विद्वान पावा को मलय देश की राजधानी बताते है। हमारे मत से मलय देश की नही पर यह भगिदेश की राजधानी थी। जैन सूत्रो मे भगिजनपद की गणना साढे पच्चीस आर्य देशो मे की गई है। मल्ल और मलय को एक मान लेने के परिणाम स्वरूप पावा को मलय की राजधानी मानने की भूल हुई मालूम होती है।
पावा (2) - दूसरी पावा कोशल से उत्तर-पूर्व मे कुशीनारा की तरफ मल्ल राज्य की राजधानी थी। मल्ल जाति केराज्य की दो राजधानियाँ थी, एक कुशीनारा और दूसरी पावा । आधुनिक पडरौना को जो कासिया से बारह मील
और गोरखपुर से लगभग 50 मील है, पावा कहते हैं। तब कोई-कोई गोरखपुर जिला मे पडरौना के पास नो पपउर गाँव है, उसको प्राचीन पावापुर मानते हैं।
पावा (3) – तीसरी पावा मगध जनपद मे थी। यह उक्त दोनो पावाओ के मध्य मे थी। पहली पावा इसके आग्नेय दिशा भाग मे थी और दूसरी इसके वायव्य कोण मे लगभग सम अन्तर पर थी इसीलिए यह प्राय पावा-मध्यमा के नाम से ही प्रसिद्ध थी। भगवान् महावीर के अन्तिम चातुर्मास का क्षेत्र और निर्वाणभूमि इसी पावा को समझना चाहिये। आज भी यह पावा, जो बिहार नगर से तीन कोस पर दक्षिण मे है, जैनो का तीर्थधाम बना हुआ है। xv आदक्षिण-प्रदक्षिणा दक्षिण-दिशा से आरम्भ कर प्रदक्षिणा करता है।
हस्तलिखित-औपतातिक, पृष्ठ 40, संवत् 1211,
प्राप्ति स्थल-अगरचन्द भैरोदान सेठिया ग्रन्थालय, बीकानेर xvI आभियोगिक देव आभियोगिक देव-वेतनभोगी नौकर की तरह कार्य करने वाले ।
रायपसेणियम्-हेमशब्दानुशासन 6/4/15 पृ 52 बेचर दास XVI वैक्रिय समुद्घात
शंका - यहाँ रत्नादि के पुद्गलो को ग्रहण कर वैक्रिय समुद्रघात कहा है तब शका होती है कि रत्नादि प्रायोग्य पुदगल औदारिक हैं और उत्तरवैक्रिय के पुद्गल वैक्रिय है तब कैसे सगत होगा?