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128 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय
सर्वभद्र ग्रैवेयक | सुविशाल ग्रैवेयक
सुमनस ग्रैवेयक सौमनस ग्रैवेयक प्रियकर ग्रैवेयक आदित्य अनुत्तर विमान कुल
84,97,0,23 विमान III चतुष्कोण
सर्वगोलाकार विमानो के एक द्वार होता है, त्रिकोण विमानो के तीन द्वार होते है और चतुष्कोण विमानो के चार द्वार होते हैं। गोल विमान का द्वार पूर्व दिशा की ओर समझना उचित है। यह बात आवलिका प्रविष्ट वृत्त विमान मे भी सभव है। शेष के लिए अधिक द्वार भी होना सभव है।
वृहत्संग्रहणी, चतुर्थ वैमानिक निकाय, गाथा-98 IV पुष्पावकीर्ण धनोदधि - ठोस पानी घी जैसा जमा हुआ वह अप्काय का
भेद होने से सचित्त है। धनवात - ठूस-ठूस कर भरी मजबूत वायु (यह भी सचित्त है)
आकाश ___ - अवकाश देने के स्वभाव वाला अरूपी द्रव्य है। वैमानिक की परिभाषा -
विशिष्टपुण्यैर्जन्तुभिर्मान्यन्ते-उपभुज्यते इति विमानानि तेषु भवा वैमानिका विशिष्ट पुण्यशाली जीवो के जो भोगने योग्य है वे विमान कहलाते है, उनमे उत्पन्न हुए वैमानिक कहलाते हैं। पुष्पावकीर्ण विमान-स्वस्तिक, नन्द्यावर्त, श्रीवत्स, खड्ग, कमल, चक्रादि विविध आकार वाले प्रत्येक प्रतर मे होते हैं।
वृहत सग्रहणी, वैमानिक-निकाय, गाथा 96, पृ 275 v इन्द्रकविमान
प्रत्येक प्रतर मे इन्द्रक विमान होने से सर्वप्रतरो के 62 इन्द्रक विमान होते हैं। ये इन्द्रक विमान सर्वप्रतरो के मध्य भाग में होते हैं। प्रत्येक कल्प मे चारो दिशाओ मे चार पक्तियाँ होती हैं।
उनमे प्रथम प्रवर मे बासठ विमानो की चार पक्तियाँ, द्वितीय प्रतर मे इकसठ विमानो की चार पक्तियाँ। इसी तरह अनुत्तर। इसी तरह अनुत्तर के अन्तिम प्रतर तक एक-एक हीन करते-करते अनुत्तर मे एक विमान रह जाता है।