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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 121 भी उसे वह कन्या नहीं मिली। श्रेणिक राजा अपने प्रासाद मे प्रविष्ट हुआ।
इधर दुर्गन्धा के शरीर की दुर्गन्धLAXII व्यपगत हुई। वह सड़क पर पडी थी और एक बध्या आभीरी युवती उधर से गुजरी। उसने दुर्गन्धा के रूप और लावण्य को देखा । उसे देखकर उसने उस बालिका को उठा लिया। अपने घर ले गयी और वात्सल्य-भाव से ओत-प्रोत उसका लालन-पालन करने लगी। चोर बना अचोर :
राजगृह नगर मे जहा अनेक दातार लोग पैदा हुए वहीं पर भीषण उत्पात मचाने वाले चोर-लुटेरे भी, जिन्होने जनता मे त्राहि-त्राहि मचा दी। ऐसे-ऐसे लुटेरे भी भगवान् की वाणी श्रवणकर ससार-सागर से तिर गये। उन्हीं लुटेरो मे एक था-रोहिणेय चोर। उसके पिता का नाम था-लोहखुर। वह लोहखुर राजगृह नगर के समीप वैभारगिरि की विषम कन्दरा मे रहता था। वह रौद्ररस की तीव्रता को धारण करने वाला, परद्रव्य हरण और परस्त्री हरण मे पारगत था। नगर के महल और भडार पर स्वय का आधिपत्य जमाते हुए वह निरन्तर निर्भय होकर चोरी करता था। उसकी रोहिणी नामक पत्नी आकृति एव चेष्टा मे मानो उसकी प्रतिकृति थी। एक बार रोहिणी ने एक पुत्र का प्रसव किया, जिसका नाम रोहिणेय रखा । रोहिणेय भी युवा होकर लोहखुर के पथ का अनुकरण करने लगा। चौर्यकर्म में वह इतना निष्णात बन गया कि उसने अपने पिता को भी पीछे छोड दिया।
लोहखुर अब अपने जीवन की अन्तिम घड़ियाँ गिन रहा था, तब उसने __ अपने पुत्र रोहिणेय को बुलाया और कहा-बेटा ! मैं जीवन की अन्तिम शिक्षा तुम्हे देना चाहता हूँ।
रोहिणेय-कहिए पिताश्री ! आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य है।
लोहखुर-बेटा, तू चोरी करने सब जगह जाना, लेकिन एक बात का खयाल रखना कि जहाँ भगवान महावीर का समवसरण हो, वहाँ उपदेश श्रवण करने मत जाना।
रोहिणेय-पिताश्री ! आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य है।
लोहखुर पुत्र के वाक्य श्रवण कर अत्यन्त हर्षित हुआ और उसने उसी समय अपने प्राणो का व्युत्सर्ग कर दिया। पिता को परलोक पहुँचा हुआ जानकर रोहिणेय ने पिता की पार्थिव देह का अन्तिम सस्कार किया ओर तदनन्तर वह चौर्यकर्म मे सलग्न हो गया। वह अपने चीर्यकर्म से राजगृह नगर मे भयकर उत्पात मचाने लगा। __ भगवान् भी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए चौदह हजार मुनियो सहित राजगृह (क) कंगरा-गुफा