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________________ 120 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय देखकर भगवान् से पूछा-भते ! हम आपश्रीजी के दर्शनार्थ आ रहे थे तब मार्ग मे एक नवजात बालिका पडी थी। मैं स्वय उसके पास गया लेकिन उसके शरीर से भयकर दुर्गन्ध फूट रही थी। वहाँ खडा रहना मुश्किल था। भगवन्, हम उस लडकी को वहीं छोडकर आ गये। उसका भविष्य क्या है? वह लडकी कहाँ से आई है? उसके शरीर मे से दुर्गन्ध क्यो आ रही है? श्रेणिक राजर्षि के पूछने पर प्रभु ने फरमाया-श्रेणिक | राजगृह के पास प्रदेश मे धनमित्र नामक एक श्रेष्ठी रहता था। उस श्रेष्ठी की पत्नी ने समय आने पर एक कन्या को जन्म दिया, जिसका नाम धनश्री रखा। वह धनश्री शनै-शनै बडी होने लगी और क्रमश यौवन अवस्था को उसने सम्प्राप्त कर लिया। श्रेष्ठी ने योग्य वर देखकर कन्या का विवाह तय कर दिया । ग्रीष्म ऋतु मे विवाह की तिथि तय कर दी। जोर-शोर से विवाह की तैयारियां चलने लगी। उत्सव प्रारम्भ हो गया तभी सुदूर क्षेत्र से विहार करके एक मुनि श्रेष्ठी के यहाँ पर गोचरी हेतु पधारे। सेठ ने अपनी पुत्री से कहा-बेटी ! मुनिराज आये हैं, तुम सुपात्र दान का लाभ ले लो। अपने पिता की प्रेरणा से वह मुनि को आहार बहराने लगी। उस समय मुनि के शरीर व कपडो से पसीने की गध आ रही थी। उसने चितन किया-अरे प्रभु का शासन वैसे तो सर्वोत्तम है, लेकिन यदि स्नान करने की छूट रहती तो कितना अच्छा होता। बस, इतना-सा मुनि के प्रति जुगुप्सा भाव पैदा हुआ और उसने जीवनपर्यन्त इस भाव की आलोचना नहीं की, प्रायश्चित्त नहीं लिया तो वह मृत्यु आने पर काल करके राजगृह नगर की नगरवधू के गर्भ मे पैदा हुई । गणिका ने गर्भ गिराने का बहुत उपाय किया लेकिन सब उपाय निरर्थक रहे। उस गणिका ने समय आने पर एक कन्या को जन्म दिया। उस कन्या के शरीर से भयकर दुर्गन्ध आ रही थी। गणिका ने उस कन्या को विष्ठा की तरह सडक पर फेक दिया और वही कन्या तुम्हे रास्ते मे दिखाई पड़ी। भते । इस कन्या का भविष्य क्या है? श्रेणिक द्वारा पूछने पर भगवान् ने फरमाया-श्रेणिक ! इसने दुख भोग लिया है, अब इसके सुख का समय आने वाला है। आठ वर्ष की उम्र होने पर यह तुम्हारी रानी बनेगी 1166 श्रेणिक-भगवन ! मैं कैसे पहचानूंगा कि यह वही दुर्गन्धा है? भगवान्-एक बार अन्त पुर मे क्रीडा करते हुए यह तुम्हारी पीठ पर चढकर हॅसेगी, तब तुम जान लेना कि यह वही दुर्गन्धा है। __ श्रेणिक-अहो ! घोर आश्चर्य है कि यह दुर्गन्धा मेरी पत्नी बनेगी . पत्नी बनेगी। इन्हीं विचारो मे डूवा राजा श्रेणिक प्रभु को वदन- नमस्कार करके लौट गया। रास्ते मे उसने दुर्गन्धा को देखने का प्रयास किया, लेकिन खूब खोजने पर
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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