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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 117
दूसरे दिन प्रात काल महारानी चेलना सदा की भाँति उद्यान मे परिभ्रमण करने लगी। अनेक तरुवृन्दो की शोभा निहारती - निहारती वह आम्रवृक्ष के समीप पहुँची । आम्रवृक्ष की ओर दृष्टि जाते ही वह दग रह गयी । सोचने लगी- अरे यह क्या? किसने आम्रफल चुराये ? इतने आम्र बगीचे मे से कहाँ गायब हो गये? वह सोच-सोचकर बेचैन हो गयी, लेकिन उसे समाधान नहीं मिला । आखिरकार वह राजा श्रेणिक के पास पहुँच गयी । श्रेणिक ने चेलना को देखकर पूछा-इस समय तुम यहाँ ?
चेलना - अरे ! क्या बताऊँ, वाटिका मे से कोई व्यक्ति आम्रफल चुरा कर ले गया है । लगता है कोई शातिर चोर है ।
श्रेणिक - कब ले गया?
चेलना - लगता है, रात्रि मे ले गया क्योकि कल सुबह तक तो सब कुछ ठीक था ।
श्रेणिक - अच्छा, चोर का पता लगाता हूँ ।
श्रेणिक राजा ने अभयकुमार से कहा - अभय । चेलना की वाटिका मे से कोई आम्रफल चुराकर ले गया है। वृक्ष की डालियाँ ऊँची थी, लगता है किसी विद्या के बल से उसने डालियाँ नीची करली और आम्रफल चुरा लिये। उस चोर का पता लगाना जरूरी है। वह असामान्य चोर अन्त पुर मे भी कभी चोरी कर सकता है।
अभयकुमार-पिताश्री थोडे समय मे ही चोर का पता लगाता हूँ । यो कहकर अभयकुमार कार्य मे व्यस्त हो गया ।
चोर का पता लगाने के लिए नित्यप्रति नगर मे घूमने लगा । एक दिन घूमते-घूमते अभयकुमार एक स्थान पर पहुँचा जहाँ नाटक होने वाला था । जनता की बहुत भीड एकत्र थी लेकिन नट-मण्डली का आगमन नहीं हुआ था । सब नट - मण्डली का इतजार कर रहे थे। तब अवसर का लाभ उठाते हुए अभयकुमार ने कहा- जब तक नट- मण्डली नहीं आती, मे तुमको एक कथा सुनाता हूँ और यो कहकर कहानी सुनाना प्रारम्भ किया और वहाँ बैठी जनता एकाग्र मन से श्रवण करने लगी ।
प्राचीन काल मे बसन्तपुर नामक एक नगर था । वहाँ एक जीर्ण (निर्धन) सेठ रहता था। उसके एक कन्या थी । वह उत्तम वर पाने के लिए कामदेव की पूजा करने लगी। इस हेतु वह प्रतिदिन उद्यान से चोरी करके पुष्प लाती। पुष्पों के निरन्तर चुराये जाने से उद्यान के माली ने एक दिन सोचा कि पुष्प-चोर को पकडना चाहिए