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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 115 श्रेणिक-अभय ! तुझे बार-बार साधुवाद है। तू वास्तव मे मेरा अतिजात पुत्र है। चल, अब अन्त पुर की ओर चलते हैं।164 श्रेणिक और अभयकुमार चेलना के पास जाते हैं। तब श्रेणिक पूछता है-चेलना, रात्रि मे तू बोल रही थी, उनका क्या हो रहा होगा? उसका तात्पर्य? चेलना-राजन् ! शीत भयकर थी, तब उस समय आपका ठडे हाथ का स्पर्श हुआ तो मेरे मुँह से सीत्कार निकली। मैंने चितन किया कि मखमली गद्दे-रजाइयो मे मैं मात्र शीत हस्त-स्पर्श से सीत्कार करने लगी तब शीतकालीन आतापना लेने वाले उन प्रतिमाधारी मुनि का क्या होता होगा? __ श्रेणिक-ओह ! कितना धर्म का अनुराग है कि नींद मे साधुओ के प्रति तुम्हारा जबरदस्त अहोभाव । तुम वस्तुत जिन-धर्मानुरागिनी हो, जिनेश्वर उपासिका हो। इस प्रकार वार्तालाप से वातावरण हर्षमय बन जाता है। एक स्तम्भ प्रासाद : चेलना के गुणो को देखकर श्रेणिक का मन-मधुप निरन्तर उसकी ओर समाकृष्ट होने लगा और वह प्रणय के वातायन मे झॉककर देखने लगा कि चेलना मुझे सर्वाधिक प्रिय है। अतएव उसके लिए एक स्तम्भ पर बनने वाले प्रासाद का निर्माण करवाऊँ जिससे वह मानो विमान मे रहने वाली देवी की तरह स्वेच्छा से क्रीडा कर रही है। ऐसा विनिश्चय करके श्रेणिक ने अभयकुमार को बुलाया और कहा-वत्स! चेलनादेवी के लिए एक स्तम्भ वाले प्रासाद का निर्माण करवाओ। अभय-जैसी आज्ञा ! यो कहकर अभयकुमार वहाँ से चल दिया। तत्पश्चात् अभयकुमार ने सूत्रधार को बुलाया और कहा-तुम जगल मे जाओ और एक स्तम्भ पर महल का निर्माण हो सके ऐसा काष्ठ लेकर आओ। जैसी आज्ञा ! यो कहकर सूत्रधार जगल मे गया और वहाँ जाकर वृक्ष का चयन करने के लिए प्रत्येक वृक्ष का निरीक्षण करने लगा। निरीक्षण करते-करते वह एक उत्तम लक्षण वाले वृक्ष के पास पहुंच गया। उसे देखकर विचार किया कि धनी छाँव वाला, गगनचुम्बी, फल-फूलो से लदी डालियो वाला, मोटी शाखा वाला. विशाल स्कन्ध वाला यह वृक्ष सामान्य नहीं है। इस वृक्ष पर अवश्यमेव किसी व्यन्तर देव का निवास स्थान है। अतएव सर्वप्रथम इस देव की आराधना करनी चाहिए. उसके पश्चात् वृक्ष (क) अतिजात-कुल के गौरव में वृद्धि करने वाला (ख) सूत्रधार-वढई, दस्तकार
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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