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________________ ___ अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 113 श्रेणिक-हॉ, मुनि-जीवन की साधना सर्वोत्तम है। भगवान् महावीर के साधको की चर्या अत्यन्त क्लिष्ट है। चेलना-देह-ममत्व-परित्याग का यह उत्कृष्ट उदाहरण है। श्रेणिक-हॉ, मुनि इन्द्रिय विजेता होते हैं, इसी कारण वे कर्मवृन्द को समाप्त कर अनुत्तर गतिक को प्राप्त करते हैं। चेलना-ऐसे शीतकाल मे अपने को कोई बिस्तर का परित्याग करना पडे श्रेणिक-सुदुष्कर है, सुदुष्कर है। (पथ समाप्त हो जाता है, दोनो राजभवन मे चले जाते हैं) महलों में आग : ___ कुछ ही समय पश्चात् सूर्य अस्ताचल की ओर चला जाता है। रात्रि के आगमन के साथ ही शीतल पवन के झोके शरीर मे कम्पन्न पैदा कर रहे हैं। कर्पूर की धूप से सुवासित वासगृह मे श्रेणिक अपना राजकीय कार्य सम्पूर्ण कर चला जाता है और जहाँ चेलना शयन कर रही थी. वही जाकर स्वयमेव विश्राम करने लगता है। अर्धरात्रि के समय नीद मे श्रेणिक के शीतल हाथ का स्पर्श चेलना के लगता है तो उसके मुंह से सीत्कार की ध्वनि निकलती है। उसी समय चेलना को प्रतिमाधारी मुनि का स्मरण हो आता है और मुँह से शब्द निकलते हैं-"अरे | कितनी जबरदस्त ठड है। इस ठड मे उनका क्या होगा?" ऐसा बोलकर पुन सो जाती है। राजा श्रेणिक चेलना के इन शब्दो को श्रवण कर भ्रमित हो जाता है और चितन करता है वस्तुत चेलना दुराचारिणी स्त्री है। मै इससे कितना प्रेम करता हूँ और यह किसी दूसरे का स्मरण कर रही है। अब क्या करना चाहिए इसको कोई कड़ी सजा देनी चाहिए क्या सजा दूं क्या सजा दूं। बस, इसी उधेड-बुन मे सम्पूर्ण रात्रि जगते-जगते व्यतीत कर देता है। प्रात काल होने पर सम्राट् श्रेणिक ने अभयकुमार को बुलाया। तव अभयकुमार ने तुरन्त उपस्थित होकर पितृ चरणो मे प्रणाम किया और कहा-पिताश्री । आदेश दीजिए, आपने किस कारण याद किया है? श्रेणिक-अभय । मेरा पूरा अन्त पुर दुराचार से दूषित है। इसलिए तू अभी समस्त अन्त पुर को जला देना। इस कार्य को करते हुए अपनी माताओ के प्रति जरा भी ममत्व मत रखना। (क) अनुत्तर गति-मोक्ष (ख) वासगृह-गायनकक्ष
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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