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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग- द्वितीय : 109 तपस्वियों की वार्ता श्रवण कर राजा बोला - राजकर्मचारियो सहित मै स्वय तुम्हारे साथ चलता हूँ । यो कहकर राजा तपस्वियों के साथ चल देता है । वहाँ जाकर सेचनक को पकड़ लेते है । उसे राज्य मे लाते है और उसके पैरो मे सॉकल बाँध देते हैं। सेचनक अपनी सूँड, पूँछ और कानो को स्थिर कर आसानी से सॉकल बँधवा लेता है। तब तपस्वी सेचनक को सॉकलों से आबद्ध देखकर तिरस्कार करते हैं। अरे खल ! तू कितना अधम है ! हमने तुझे कितने यत्नो से पाला और तूने हमारे ही आश्रम को छिन्न-भिन्न किया । इसी का दुष्परिणाम तुझे भोगना पड रहा है । अरण्य के सुख का त्याग कर सॉकलो मे बँधा रहना पड रहा है। सेचनक सोचता है, जरूर इन तपस्वियो ने राजा से मेरी शिकायत की है, इसीलिए राजा ने मुझे सॉकलो से बाँधा है, अत मैं अब इन तपस्वियो को मजा चखाता हॅू। ऐसा विचार कर उसने तडातड तडातड बधन तोड दिये । बधनमुक्त बनकर उसने तपस्वियो को उठा-उठाकर दूर फेक दिया और स्वय जगल की ओर भाग गया। राजा श्रेणिक उस हाथी को वश मे करने के लिए अश्वारूढ होकर अपने पुत्रो आदि सहित जगल मे गया और चारो तरफ से उसे घेर लिया । वह हाथी मानो व्यन्तर के प्रकोप से ग्रस्त हो, इस प्रकार अपने प्रबल बल का परिचय देता हुआ सभी महावतो का तिरस्कार करता हुआ मदोन्मत्त बना हुआ, किसी के वशीभूत नहीं होता हुआ भयकर उछल-कूद मचा रहा था । तब नन्दीषेण ने उसे बडे प्रेम से सम्बोधित किया । नन्दीषेण की वाणी को श्रवण कर उसे अवधिज्ञान हुआ । किन्हीं आचार्यो के मतानुसार उसे जाति-स्मरण ज्ञान पैदा हो गया और वह बिलकुल शात, प्रशात बन गया । तब नन्दीषेण उसके समीप आया, दॉत पर पैर रखकर आरूढ हुआ और सेचनक के कुम-स्थल पर तीन बार मुष्टि से प्रहार किया जिससे मानो वह हस्ती पूर्ण शिक्षित हो गया। अब उसे राज्य मे लाते है और राजा उसे अपने पट्टहस्ती के रूप में नियुक्त कर देता है। इधर श्रेणिक राजा राज्य का सचालन कर रहा है, उधर राजगृह मे भगवान् पधारे हुए हैं। मेघकुमार ने सयम अगीकार कर लिया है। जागरण : नंदीषेण का : एक दिन नन्दीषेणकुमार भी भगवान् महावीर की धर्मदेशना श्रवण करने गया। भगवान् की देशना श्रवण करके नन्दीषेण विरक्त बना और घर आकर (ख) अधम- पापी (क) खल-दुश्मन (ग) कुंभ स्थल - हाथी का मस्तक- ललाट स्थल
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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