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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 107 जिमाने के बाद जो रसोई बचे, बस, मुझे तो वह रसोई चाहिए और कुछ नहीं ब्राह्मण ने दास की इस बात को स्वीकार कर लिया। वह ब्राह्मणो के जीमने के बाद जो भी बचता उसे अपने पास रखता और साधु-मुनिराज का योग मिलने पर सुपात्र दान देता। उसके पश्चात् खुद भोजन करता। इस प्रकार सुपात्र दान की भावना से उसने देवायु का बध कर लिया और मृत्यु को प्राप्त होकर देवलोक मे देव बन गया।
देवलोक का आयुष्य पूर्ण कर वह देव श्रेणिक राजा के पुत्र नन्दीषेण के रूप मे उत्पन्न हुआ। वह यज्ञकर्ता ब्राह्मण का जीव अनेक योनियो मे परिभ्रमण करने लगा। इधर एक जगल मे हाथियो के यूथ मे एक यूथपति हाथी दिग्गजकुमार जैसा था। वह सोचता था कि इन हाथियो का स्वामी अन्य कोई हाथी न बन जाये, इसलिए जो भी हस्ती कलभ पैदा होता तो वह जन्मते ही उसको मार डालता। एक बार यूथ मे रही हुई हथिनी गर्भिणी हो गयी। यज्ञकर्ता ब्राह्मण का जीव उस हथिनी के गर्भ में आया। तब उस सगर्भा हथिनी ने विचार किया कि यह पापी यूथपति, जो भी शिशु जन्मता है, उसे मार डालता है। मै भी जिस शिशु का प्रसव करूँगी उसे यह मार डालेगा। इसलिए मुझे अपने गर्भस्थ शिशु के सरक्षण के लिए कोई उपाय करना चाहिए। उस हथिनी का मातृ वात्सल्य हिलोरे लेने लगा। उस वात्सल्य के रस से अभिभूत होकर वह मायाजाल से पैर लगडाती चलने लगी। बहुत दिनो से हाथी से मिलने लगी। हाथी ने सोचा-इस हथिनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं, इसे विश्राम की अपेक्षा है, अत हाथी भी निश्चिन्त-सा बन गया।
एक बार वह यूथपति हस्ती दूर चला गया और हथिनी अपने मस्तक पर तृण का पूला लेकर तपस्वियो के आश्रम मे आयी। उसे स्खलित पैर से चलते हए देखकर तपस्वियो के मन मे करुणा का सचार हुआ और वे तपस्वी उसकी परिचर्या करने लगे। समय आने पर उसने एक सुन्दर हस्ती शिशु को जन्म दिया।
हथिनी अपने बच्चे की रक्षा के लिए उसे आश्रम मे छोडकर अपने यूथ मे चली गयी और स्वस्थता का अनुभव करने लगी। अवसर देखकर गुप्त रीति से आश्रम मे अपने शिशु को दुग्धपान कराने, उसकी परिचर्या करने जाती थी। वह बाल कलभ शने -शनै तपस्वी आश्रम मे बडा होने लगा।
तपस्वी उस बाल कलभ को पक्च, नीवार तथा शल्लकीप के कवल खिलाकर अत्यन्त प्रेम से पालन कर रहे थे। वह हस्ती-शिशु भी तपस्वियो के साथ क्रीडा करता था। अपनी सॅड मे जल से परिपूर्ण घडे लता और वृक्षो का सिचन करता
(क) नीवार-तृण धान्य
(ख) राल्लको-एक वृक्ष विशेष जो हार्थियों को बहुत प्रिय है।