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________________ 106 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय था। तुम वहाँ गये और वहाँ खडे हो गये। उस समय तुम्हारे शरीर मे खुजली चली। तुमने खुजली करने के लिए एक पैर ऊँचा उठा लिया। तब जगह की सकीर्णता से एक खरगोश वहाँ पर आ गया। उस खरगोश पर दया करके तुमने पैर ऊपर उठाकर रखा। 2/2 दिन तक पैर ऊँचा रखने से अनुकम्पा के कारण तुम्हारा ससारपरित्त हुआ और मनुष्यायु का बध किया 158 दावानल शात होने पर पैर नीचा रखने का प्रयास किया, लेकिन पैर नीचे रखा नहीं गया। तुम धडाम से धरती पर गिर पडे। तीन रात-दिन वेदना सहन कर तुम मेघकुमार के रूप मे उत्पन्न हुए। तुम क्रमश युवा हुए और सयम अगीकार किया। मेघ ! जरा चितन करो, जब तुम हाथी थे, तुम्हे सम्यक्त्व भी नहीं था, तब भी प्राणियो की अनुकम्पा से, जीव मात्र की अनुकम्पा से पैर अधर रखा, नीचे नहीं टिकाया। तुम सहनशील बने रहे तो इस भव मे तो तुमने अपने उत्थान, बल', वीर्य, पुरुषाकार, पराक्रम से सयम लिया है। तुम्हे रात्रि मे श्रमणो के हाथ का स्पर्श हुआ, पैर का स्पर्श हुआ यावत् तुम्हारा शरीर धूलि-धूसरित हो गया। तुम उसे सम्यक् प्रकार सहन न कर सके। बिना क्षुब्ध हुए सहन न कर सके। अदीन भाव से सहन न कर सके। शरीर को निश्चल रखकर सहन न कर सके। भगवान् के वचनो को श्रवण कर शुभ परिणामो से मेघ मुनि को जाति-स्मरणज्ञान हुआ। वे अपने पूर्वभव का वृत्तान्त सम्यक्रूपेण जानने लगे। हर्षान्वित होकर उन्होने भगवान् को वदन किया और निवेदन किया-भते! आप मुझे दूसरी बार प्रव्रजित करने की कृपा करावे। तब प्रभु ने उन्हे पुन प्रव्रजित किया और वे सम्यक्तया तप सयम मे लीन रह ग्यारह अगो का अध्ययन करने लगे।159 पहहस्ती : सेचनक : मेघ मुनि की दीक्षा के पश्चात् राजा श्रेणिक के पुत्र नन्दीषेण की दीक्षा प्रभु के मुखारविन्द से हुई, ऐसा इतिहास मे उल्लेख मिलता है। नन्दीषेण का जीव किस प्रकार राजघराने मे जन्मा, उसके जीवन का रोचक वृत्तान्त उपलब्ध होता है, वह इस प्रकार है - पूर्वकाल मे एक यज्ञकर्ता ब्राह्मण था। उसने एक दास को नौकर रूप मे रखा और उस दास से पूछा कि तु क्या लेगा? तब उसने कहा-ब्राह्मणो को (क) संसारपरित्त-ससार कम करना (अर्थात् अर्द्धपुद्गल परावर्त ससार परिभ्रमण शेप रहना) (ख) उत्थान-विशिष्ट शारीरिक चेष्ठा (ग) बल-शारीरिक शक्ति (घ) वीर्य-आत्म वल (ङ) पुरूषाकार-पुरुषार्थ (च) पराक्रम-पौरुपशक्ति
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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