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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग- द्वितीय : 105 कठ शुष्क बन रहे थे। तब तुम बिना घाट के ही कीचड की अधिकता वाले सरोवर मे पानी पीने उतर गये। वहाँ तुमने पानी पीने के लिए सूँड फैलाई, लेकिन तुम्हारी सूँड पानी न पी सकी। तुमने कीचड से निकलने का प्रयास किया, परन्तु बाहर निकलने के बजाय तुम कीचड मे धँसते ही चले गये। उस समय एक नौजवान हाथी वहॉ पर आया, जिसको तुमने पहले कभी मार कर अपने झुण्ड से बाहर निकाल दिया था। उस हाथी ने तुम्हे कीचड मे फॅसा देखा, देखते ही उसे पूर्ववैर का स्मरण हो आया और उसने अपने तीक्ष्ण दाँत से तुम्हारी पीठ बीध डाली । वैर का बदला लेकर वह हाथी पानी पीकर लौट गया। उस दत प्रहार से तुम्हारे शरीर मे भीषण वेदना पैदा हुई जिसको तुमने सात दिन-रात तक भोगा । तब तुम 120 वर्ष की आयु पूर्ण करके कालमास मे काल करके जम्बूद्वीप के दक्षिणार्ध भरत मे गंगा महानदी के किनारे विध्याचल पर्वत पर एक हथिनी के गर्भ मे पैदा हुए। नौ मास पूर्ण होने पर बसन्त ऋतु तुम्हारा जन्म हुआ। मे तुम बाल्यावस्था से ही चचल स्वभाव के थे । युवावस्था प्राप्त होने पर उस यूथ का यूथपति" हाथी मर गया । तुम यूथ के मालिक बने। हस्ति समूह का वहन करने लगे। तुम्हारा नाम मेरुप्रभ था। तुम युवा हथिनियो के पेट मे सूँड डालते हुए एव उनके साथ विविध क्रीडाऍ करते हुए विचरण करने लगे। तब एक बार ग्रीष्मकाल मे ज्येष्ठ की गर्मी से दावानल की ज्वालाओ से वन- प्रदेश जलने लगे। तब तुम भयभीत होकर हथिनियो और हस्ति-शिशुओ सहित इधर-उधर दौडने लगे। उस समय तुमने सोचा कि ऐसा दावानल मैने पहले कहीं देखा है। निरन्तर सोचते-सोचते तुम्हे जातिस्मरण" ज्ञान हो गया । तुम अपना पूर्वभव, सुमेरुप्रभ हाथी का, जानने लगे और अब दावानल से बचने के लिए तुम सोचने लगे कि विध्याचल की तलहटी मे एक बड़ा मण्डप बनाऊँ। तब तुमने वर्षाकाल मे खूब वर्षा होने पर गगा महानदी के किनारे 700 हाथियो के साथ मिलकर एक योजन का विशाल मण्डप बनाया । वहाँ घास, पत्ते वृक्षादि को उखाड कर फेक दिया और सुखपूर्वक विचरण करने लगा। एकदा ग्रीष्मकाल आने पर उस जगल मे भयकर दावानल लगा । तुम स्वनिर्मित मण्डप की ओर गये । मण्डप शेर, चीते आदि जगली जानवरो से परिपूर्ण भरा (क) यूथ-ममूह (ख) यूथपति-समूह का स्वामी (ग) जातिस्मरण - पूर्व जन्म का स्मृति सूचक ज्ञान (मति ज्ञान का एक भेद )
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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