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________________ पं. सुखलाल जी ने तस्वार्थसूत्र विवेचन की प्रस्तावना में विविध शोध विन्दुओं के आधार पर वाचक उमास्वाति का प्राचीन से प्राचीन समय वीर निर्वाण की 5 वीं (विक्रम की प्रथम ) और अर्वाचीन से अर्वाचीन समय वीर निर्वाण संवत् की 8 वीं 9 वीं (विक्रम 3-4 वी शताब्दी का निर्धारित किया है। The g डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने बहुत ऊहापोह के पश्चात् आचार्य कुन्दकुन्द के समय का निर्णय किया है और जिससे गृद्धपिच्छ, आचार्य कुन्दकुन्द के शिष्य प्रकट होते हैं। उपाध्ये जी के अनुसार कुन्दकुन्द का समय ईसा की प्रथम शताब्दी के लगभग है । अतः गृद्धपिच्छाचार्य उसके पश्चात् ही हुए हैं। आचार्य कुन्दकुन्द का समय निर्णीत हो जाने के पश्चात् आचार्य गृद्धपिच्छ का समय पट्टावलियों और शिलालेखों आचार्य कुन्दकुन्द के पश्चात् गृद्धपिच्छ का नाम आया है। अतएव इनका समय ईस्वी प्रथम शताब्दी का अन्तिम भाग और द्वितीय शताब्दी का पूर्वभाग घटित होता है। निष्कर्ष यह है कि पट्टावलियों, प्रशस्तियों और अभिलेखों के अध्ययन से गृद्धपिच्छ का समय ईस्वी सन् द्वितीय शताब्दी प्रतीत होता है। ग्रन्थ : आचार्य गृद्धपिच्छ प्रणीत तत्त्वार्थसूत्र उनकी सर्वमान्य रचना है और दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों एकमत हो यह मानते हैं। श्वेताम्बर अभिमत यह भी स्वीकार करता है कि आचार्य उमास्वाति ने अनेक ग्रन्थों की रचना की है। आचार्य वादिदेवसूरि ने उन्हें 500 ग्रन्थों का रचनाकार निरूपित किया है। यथा पंचशतीप्रकरणप्रणयनप्रवीणैरत्र भगवदुमास्वातिवाचकमुख्यै: ' साथ ही जम्बूद्वीपसमासप्रकरण, पूजाप्रकरण, श्रावकप्रज्ञप्ति, क्षेत्रविचार, प्रशमरतिप्रकरण आदि रचनाएँ श्वेताम्बर सम्प्रदाय में उनके नाम से प्रसिद्ध हैं। परन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय में उनकी केवल एक ही रचना तत्त्वार्थसूत्र मानी जाती है। आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी द्वारा रचित अन्य कोई ग्रन्थ इस सम्प्रदाय में उपलब्ध नहीं है। १. स्याद्वाद रत्नाकर, वादिदेवसूरिकृत,
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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