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10/सस्वार्थसून-निकप गृद्धपिच्छ के गुरु का नाम कुन्दकुन्दाचार्य होना चाहिए । श्रवणबेलगोला के अभिलेख नं. 108 में गृद्धपिच्छ उमास्वामी का शिष्य बलाकपिच्छाचार्य को बतलाया है। अतः इनके शिष्य बलाकपिच्छ हैं।
तत्वार्थसूत्र के निर्माण में आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों का सर्वाधिक उपयोग किया गया है । आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने पंचास्तिकाय में द्रव्य का लक्षण बताते हुए लिखा है -
दवं सल्लसणियं उप्पादयधुक्त्तसंजुत्तं ।
गुणपज्जयासयं वा जंतं भकति सम्बन्हू ।' इस गाथा के आधार पर तत्त्वार्थसूत्र में तीन सूत्र उपलब्ध होते हैं। ये तीनों सूत्र क्रमश: गाथा के प्रथम, द्वितीय और तृतीय पाद हैं
1. सद्यलक्षणम् । 2. उत्पादव्ययधौव्ययुक्त सत् ।'
3. गुणपर्ययवद् द्रव्यम् । चूंकि गृद्धपिच्छ ने आचार्य कुन्दकुन्द का शाब्दिक और वस्तुगत, दोनों रूप से अनुसरण किया है, अत: आश्चर्य नहीं कि गृद्धपिच्छ के गुरु आचार्य कुन्दकुन्द ही हों। श्रवणबेलगोला के उक्त अभिलेखानुसार गृद्धपिच्छ के शिष्य बलाकपिच्छ हैं। इनकी गणना नन्दिसंघ के आचार्यों में है।
यद्यपि श्वेताम्बर विद्वानों ने उमास्वामी की गुरु-परम्परा को श्वेताम्बर सम्मत गुर्वावली से सबद्ध माना है। पण्डित सुखलाल जी ने इन्हें ही तत्वार्थाधिगम भाष्य का कर्ता मानकर उच्चै गर शाखा का आचार्य माना है और यह शाखा कल्पसूत्र की स्थविरावलि के अनुसार आर्य शान्तिश्रेणिक से निकली है । आर्य शान्तिश्रेणिक आर्यसुहस्ति से चौथी पीढ़ी में आते हैं तथा वह शान्तिथेणिक आर्यवज्र के गुरु आर्य मिहगिरी के गुरुभाई होने से, आर्यवन की पहली पीढ़ी में आते हैं। तत्त्वार्थाधिगमभाष्य की प्रशस्ति में वाचक उमास्वाति ने अपने को शिवथी नामक वाचक मुख्य का प्रशिष्य और एकादशांगवेत्ता घोषनन्दि श्रमण का दीक्षा शिष्य तथा प्रसिद्धकीर्ति वाले महावाचकश्रमण श्री मुण्डपाद का विद्यापशिष्य बतलाया है।
पण्डित जुगलकिशोर जी मुख्तार आदि ने उमास्वाति को दिगम्बर परम्परा का माना है, वे भाष्य को स्वोपज्ञ मानने के पक्ष में नहीं है।
१. पंचास्तिकाय, माथा 10. २. तत्वार्थसूप, 5/29. ३. वही, 5/30. ४.बहो,5/38.