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-मालयागादिए....॥15॥ जीवों का अवगाह लोक के असंख्यातवें भाम में, लोक के असंख्यात बहुभाय
में (प्रतर समुद्घात के समय) तथा लोकप्रमाण में होता है। -बीवार। आजीव भी द्रव्य है और मस्तिकाय भी। -निन्धरक्षवाद बन्धः ।। 33 1 स्निग्ध और रूक्ष गुणवाला होने से परमाणु में बन्ध होता है। विशेष - आत्मा में
भी राग और द्वेषभाव होने से बन्ध होता है। - संख्यात और असंख्यात प्रदेशी वर्गणायें हमारे उपयोग में नहीं आती। मैंदा का एक कण भी अनन्त अणुओं के
संघात से बनने के कारण अनन्तप्रदेशी है। - आतप का अर्थ- जो प्रकाश आँखों को न सुहाये तथा उद्योत का अर्थ-जिस प्रकाश को ऑख देखना चाहे लगा
लेना चाहिये। - अणव: स्कन्धाश्च ।। 25 ।। यहाँ च शब्द से स्कन्ध के छह भेद भी होते है, ऐसा लेना चाहिए। - जीव सिर्फ जीव पर ही उपकार करता है, अन्य पाच पर नही। क्योंकि वे पाचो अजीव द्रव्य उपकार नहीं मानते। - प्रकाश मे गति नहीं है, जबकि शब्द गतिमान होता है।
- सोऽनन्तसमयः ।। 40 ।। अर्थात् अनन्त पर्यायों को एक साथ उत्पन्न कराने वाला भी होता है। पा अम्बाब
- कायवाल्मनःकर्मयोगः ।। 1 ।। का उच्चारण ‘कायवाङ्मनः कर्म योग:' होना चाहिए। - भूतात्यनुकम्पादान ... ।। 12 || का अर्थ करते समय सब प्राणियों पर अनुकम्पा और व्रतियों पर अनुकम्पा रखना अच्छा सा नही लगता । इसकी बजाय भूतानुकम्पा - जीव मात्र पर अनुकम्पा रखना तथा व्रतियों को दान
देना, ऐसा अर्थ किया जाये तो अच्छा लगता है। - सोलहकारण भावनाएं सवर तथा निर्जरा की भी हेतु है, अत: इस अध्याय में सवर व निर्जरा का भी वर्णन है।
- पद लेकर तद्योग्य आचरण न करना भी सघ का अवर्णवाद है। सपाम अध्याय • इस अध्याय में शुभाम्रव का वर्णन तो है ही, प्रवृत्ति रूप संवर का भी वर्णन है। निवृत्ति रूप सवर का वर्णन नौवें
अध्याय में कहेगे। क्योंकि सप्तम अध्याय में सब व्रतो के दोष बताने से पूर्व सम्यक्त्व के भी अतीचारो का वर्णन
- यदि किसी वस्तु के संयोग होने पर हर्ष और वियोग होने पर दुःख हो तो उस वस्तु से मूर्छा माननी चाहिए। - गाय के इजेक्शन लगाकर दूध निकालना अथवा किसी पर बहुत दबाव देकर दान लेना, बोली बुलवाना भी
अदत्तादान है। - रुपया या वर्तमान मुद्रा को हिरण्य में लेना चाहिए। -विशानोदय..... ॥ 21 11 के अन्त में च शब्द से प्रतिमाओं तथा सल्लेखना को ग्रहण करना चाहिए। - दुःपक्वाहार - कम या अधिक पका हुआ भोजन अथवा दुबारा गर्म किया गया भोजन यह भी लेना चाहिये। ठंडे
चावल होने पर दुबारा छोंक लगाना भी दुःपक्वाहार है।