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________________ 2 / स्वार्थसूत्र-निकव एक ही जीन्यानाहारकः || 30 || इस सूत्र में वा का अर्थ 'केवलीसमुद्घात के तीन समयों में तथा चौदहवें गुणस्थान में भी जीव अनाहारक होता है' लगाना चाहिये। - - अनावितान् च ।1 41 11 सूत्र में च से तात्पर्य है कि तैजस और कार्मणशरीर का जोव से अनादि सम्बन्ध है भी और नहीं भी है। - - शुभं विशुद्ध.... ॥ 49 || सूत्र के अर्थ में च से 'यह लब्धिप्रत्यय ही होता है' ऐसा अर्थ लगाना चाहिए। - - पृथिव्यप् .... ।। 13 11 में यह क्रम रखने का कारण सख्या में उत्तरोत्तर अधिकता होना है। - अनन्तगुये परे ॥ 39 || इसका अर्थ 'आहारक से तैजस व कार्माणशरीर में अनन्तगुणे प्रदेश होते हैं' लगाना चाहिये। 'तैजस से भी, कार्माण मे अनन्तगुणे प्रदेश होते हैं ' यह अर्थ सूत्र से नहीं निकलता ।। तृतीय अध्याय - घनोदधिवातवलय सही शब्द नहीं है। इसके स्थान पर घनोदधिवलय बोलना चाहिये। - हेमार्जुन ॥ 12 ॥ में हेममया का अर्थ स्वर्ण आदि से निर्मित ठीक लगता है बजाय सोने जैसे रंग वाले के । .... अर्थात् ये पर्वत सोने आदि के हैं। क्योंकि मणियों स्वर्ण आदि पर जड़ी हुई अच्छी लगेंगी। · मणिविचित्र.... || 13 || इस सूत्र में पर्वत का आकार दीवार जैसा भी हो सकता है अथवा मृदग या इस जैसा अन्य अनेक प्रकार का भी हो सकता है। - विदेहेषु संस्थेयकालाः ॥ 31 || अर्थ मे विदेह आदि कर्मभूमियों में संख्यात वर्ष की आयु होती है ऐसा लेना चाहिए। - संक्लिष्टा..... 11 5 11 के अन्त में दिए गए च से तात्पर्य है कि कभी-कभी देवो द्वारा सुख भी दिया जाता है। - इस अध्याय का सूत्र न. 11 यदि 10 न. पर होता और सूत्र 10 11 न. पर होता तो ज्यादा अच्छा था। - शाश्वत तथा अशाश्वत दोनों भोगभूमियों मे जघन्य व उत्कृष्ट आयु के सभी विकल्प है। - - मालेच्छा || 36 || इम सूत्र में च शब्द से सम्मूर्च्छन मनुष्य लगाना चाहिए । चतुर्थ अध्याय - आवितस्मि..... ॥ 2 ॥ आदि के तीन निकायों में कृष्णनील कपोत पीत ये चार लेश्यायें होती हैं। अर्थात् इन तीन निकायों में आचार्य उमास्वामी के अनुसार पर्याप्त अवस्था में ये चारों लेश्या में पाई जाती है। वैमानिकाः || 16 || अर्थात् अब यहां से वैमानिक देवों का वर्णन प्रारम्भ होता है। 1 - वृहस्पति शब्द को त्रायस्त्रिंश जाति में मानना चाहिए । - · • परे प्रवीचाराः ॥ 9 ॥ सोलहवें स्वर्ग से आगे सभी पूर्व जन्म में महामुनि होते हैं, अत: प्रवीचार से रहित होते हैं। इनके वेदना तो है पर ऐसी नहीं, जिसका प्रतीकार आवश्यक हो । - कम्मोपपन्नाः ... | 17 11 के अन्त में जो च है, उसका अर्थ यह भी है कि ये विमान अवस्थित भी हैं। - तदष्टमानोराः ॥ 41 11 ज्योतिषियों की जघन्य आयु एक पल्य से कुछ अधिक का आठवां भाग होती है यह सूत्र का सही अर्थ निकलता है। A .
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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