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'ज्योतिर्मय जीवन'
तत्त्वार्थसूत्र- निकष / XXX
एक दिन मैने पू. मुनिश्री से प्रश्न किया,
'गुरुदेव ! धष्टता क्षमा करें पर कृपया यह बतलाये कि, 'दिव्य जीवन के द्वार' के पार पहुंच कर आपकी 'अंतस की आंखें' खुली अथवा 'अंतस की आंखें खुलने के बाद 'दिव्य जीवन के द्वार' के दर्शन हुये।'
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गुरुदेव ने मन्द मन्द मुस्कराते हुये कहा -
'अंतस की आंखें' जब खुलती हैं, तभी 'दिव्य जीवन के द्वार' के दर्शन होते हैं ।
'साँची तो गंगा है, वीतराग वाणी'
सतना चातुर्मास काल में पूज्य मुनिश्री का हर क्षण मानो अध्ययन-अध्यापन में ही व्यतीत होता था। कार्यक्रमों की लम्बी श्रृंखला के बीच भी वे अपने इस क्रम को भग नही होने देते थे। प्रातःकाल 'जैनतत्व : विद्या' की कक्षा लगती थी जिसमें भारी भीड़ होती थी। अपरान्ह मे 'सागार धर्मामृत' का अध्ययन होता इस समय भी अच्छी उपस्थिति होती ।
आहार के उपरांत और संध्या में आचार्य भक्ति के उपरांत लगभग आधा पौन घण्टे प्रश्नोत्तर चलता और इसमें बच्चों से लेकर युवाओं-युवतियों को खूब आनंद आता। विभिन्न विषयो पर प्रश्न पूछे जाते और त्वरित सटीक समाधान प्राप्त होता ।
'रामायण - गीता ज्ञानवर्षा '
पूज्य मुनिश्री के मुखार बिन्द से जिसने भी रामायण और गीता पर हुये प्रवचनों को सुना वह पूज्य मुनिश्री के तलस्पर्शी ज्ञान पर विमुग्ध होकर रह गया। पहली बार उसने अबूझे / अनछुये प्रश्नों का समाधान प्राप्त किया और राम तथा कृष्ण उसके अंदर में अधिक गहरे तक उतरते चले गये। लोगों की जुवान बस एक ही बात थी 'रामायण और महाभारत के पात्रों का ऐसा चरित्र चित्रण तो हमने पहली बार सुना है। अपनी आत्मा में समाये 'भातम राम' के आज ही दर्शन किये हैं हमने ।'
प्रस्तुति : सि.
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जयकुमार
जैन